34 करोड़ के अंतरराज्यीय फर्जी जीएसटी घोटाले का भंडाफोड़, आरोपी गिरफ्तार

भोपाल। मध्यप्रदेश में आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने 34 करोड़ रुपए के बड़े फर्जी जीएसटी इनपुट क्रेडिट रैकेट का भंडाफोड़ किया है। अधिकारियों ने शुक्रवार को बताया कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में फैले इस फर्जीवाड़े के सिलसिले में एक आरोपी को गिरफ्तार किया गया है। जांचकर्ताओं का मानना है कि यह तो बस एक शुरुआत है।
ईओडब्ल्यू के महानिदेशक उपेंद्र जैन के अनुसार, आरोपी एनके खरे उर्फ विनोद कुमार ने जबलपुर के अनजान ग्रामीणों के नाम पर चार फर्जी कंपनियां बनाकर इस घोटाले को अंजाम दिया। उसने फर्जी फर्म बनाने के लिए ग्रामीणों प्रताप लोदी, दीनदयाल लोदी, रविकांत सिंह और नीलेश पटेल के आधार कार्ड, पैन कार्ड, भूमि रिकॉर्ड और बैंक विवरण जैसे दस्तावेजों का इस्तेमाल किया।
एक बार ये फर्जी कंपनियां स्थापित हो जाने के बाद खरे ने फर्जी चालान बनाने और कुछ वास्तविक व्यापारिक लेनदेन भी किए। उसने इन चार फर्मों को नौ चालू कंपनियों से जोड़ दिया, जिससे फर्जी बिलिंग गतिविधि का जाल बन गया।
घोटाले में शामिल नौ सक्रिय फर्मों में केडी सेल्स कॉर्पोरेशन (इंदौर), महक एंटरप्राइजेज (भोपाल), दिलीप ट्रेडर्स, अंकिता स्टील एंड कोल, जगदंबा कोल कैरियर्स, कोराज टेक्निक्स, महामाया ट्रेडर्स, अंबर कोल डिपो और अनम ट्रेडर्स शामिल हैं। इन कंपनियों द्वारा बनाए गए इनवॉइस की कुल राशि ₹150 करोड़ से अधिक थी, जिसमें से ₹34 करोड़ का फर्जी जीएसटी घटक का दावा किया गया था।
अपने खिलाफ एफआईआर दर्ज होने की जानकारी मिलने के बाद खरे रांची भाग गया और वहां कोयले का कारोबार करने लगा। हालांकि, ईओडब्ल्यू की टीमों ने उसे ट्रैक किया, रांची में गिरफ्तार किया और जबलपुर की अदालत में पेश किया। उसे 2 जुलाई तक पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है।
जांच के दौरान अधिकारियों ने धोखाधड़ी वाले लेनदेन से जुड़े कंपनी के लेटरहेड, फर्म की मुहर, जाली बिल और मोबाइल फोन सहित बड़ी संख्या में दस्तावेज जब्त किए। अधिकारियों का मानना है कि जांच आगे बढ़ने पर और भी लोग और संस्थाएं सामने आ सकती हैं।
ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने कहा कि कार्यप्रणाली जीएसटी देयता के क्रमिक हस्तांतरण पर निर्भर थी। परिचालन फर्मों ने अपने जीएसटी भुगतान को डाउनस्ट्रीम कंपनियों को भेज दिया, जिन्होंने बदले में देयता को आगे बढ़ाया। आखिरकार, यह सुराग उन चार फर्जी फर्मों तक पहुंचा, जिन्होंने कर भुगतान में चूक की। इस जानबूझकर की गई चूक ने कंपनियों को पैसे जेब में डालने का मौका दिया, जबकि खरे को ₹1.70 करोड़ का भारी कमीशन मिला, जो कुल धोखाधड़ी मूल्य का लगभग पांच प्रतिशत है।