वक्फ कानून: सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश सुरक्षित रखा

नई दिल्ली। तीन दिनों की गहन बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर अंतरिम राहत के मुद्दे पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने गुरुवार को अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं के बैच पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
मेहता ने शीर्ष अदालत के समक्ष तर्क दिया, यह तथ्य कि अदालत को तीन दिनों के लिए अंतरिम रोक के लिए याचिकाओं के बैच पर सुनवाई करनी है, यह दर्शाता है कि कानून में कुछ भी असंवैधानिक नहीं है। क़ानून पर रोक लगाने के लिए केवल कानूनी तर्क अपर्याप्त हैं। सक्षम विधायिका द्वारा वैध रूप से अधिनियमित क़ानून पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं है। उन्होंने कहा कि वक्फ बनाना वक्फ को दान देने से अलग है, यही कारण है कि मुसलमानों के लिए पांच साल की प्रैक्टिस की आवश्यकता है ताकि वक्फ का इस्तेमाल किसी को धोखा देने के लिए न किया जा सके। मेहता ने कहा, मान लीजिए कि मैं हिंदू हूं और मैं वक्फ के लिए दान करना चाहता हूं, तो वक्फ को दान दिया जा सकता है। गैर-मुस्लिम को वक्फ बनाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है। वह हमेशा वक्फ को दान दे सकता है। इन दलीलों के समूह में बिना किसी उचित सामग्री के समर्थन के दायर किए जाने पर गौर करते हुए मेहता ने तर्क दिया कि तीन दिनों की सुनवाई में असंवैधानिकता का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण सामने नहीं आया है। उन्होंने सवाल किया कि केवल कानूनी प्रस्ताव या काल्पनिक तर्क संसद द्वारा विधिवत अधिनियमित कानून के संचालन को रोकने का औचित्य नहीं देते हैं।
राजस्थान राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने 2025 अधिनियम का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ इस्लाम की मूल प्रथा नहीं है, क्योंकि इसमें कोई औपचारिक समर्पण शामिल नहीं है। यह केवल प्रतिकूल कब्जे के माध्यम से भूमि को वक्फ के रूप में रखने का एक तरीका है। हरियाणा सरकार और 2025 संशोधनों का समर्थन करने वाले एक आदिवासी संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि राजस्थान में खनन उद्देश्यों के लिए दी गई 500 एकड़ भूमि पर वक्फ का दावा किया गया था।
मेहता ने आगे तर्क दिया कि मुस्लिम आदिवासियों को पीड़ित किया जा रहा है। उन्होंने कहा, अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं, लेकिन यह विधिवत अधिनियमित कानून के संचालन को रोकने का आधार नहीं हो सकता है।
सीजेआई गवई ने स्पष्ट किया कि अदालत वक्फ अधिनियम 1995 को चुनौती देने वाली किसी भी याचिका पर सुनवाई नहीं करेगी और कार्यवाही 2025 के संशोधनों तक ही सीमित रहेगी।
शीर्ष अदालत 100 से अधिक में से पांच याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, यह देखते हुए कि मामले में सभी याचिकाओं पर सुनवाई करना असंभव था, क्योंकि कमोबेश, प्रार्थनाएँ एक जैसी थीं।
केंद्र ने शीर्ष अदालत में दाखिल अपने जवाब में कहा, कानून में यह स्थापित स्थिति है कि संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएंगी और मामले पर अंतिम रूप से निर्णय लेंगी।
यूओआई ने न्यायालय के समक्ष दाखिल अपने जवाब में कहा कि संवैधानिक अदालतें किसी भी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएंगी और मामले पर अंतिम रूप से निर्णय लेंगी।