मंत्रिमंडल ने कर्नाटक, तेलंगाना, बिहार और असम को लाभ पहुंचाने वाली 3 परियोजनाओं के मल्टी-ट्रैकिंग और गुजरात के कच्छ के दूर-दराज के क्षेत्रों को जोड़ने के लिए एक नई रेल लाइन को मंजूरी दी
*रेलवे द्वारा अपने मौजूदा नेटवर्क में 565 किलोमीटर मार्ग जोड़ने से कोयला, सीमेंट, क्लिंकर, फ्लाई ऐश, स्टील, कंटेनर, उर्वरक, कृषि वस्तुओं और पेट्रोलियम उत्पादों आदि के परिवहन को बढ़ावा मिलेगा
यात्री और माल दोनों को लाभ पहुंचाने वाला निर्णय; कच्छ में नई रेल लाइन, सीमावर्ती कच्छ के रण, हड़प्पा स्थल धोलावीरा, कोटेश्वर मंदिर, नारायण सरोवर और लखपत किले को जोड़कर पर्यटन को बढ़ावा देगी।
भोपाल 27 अगस्त। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रेल मंत्रालय की चार परियोजनाओं को मंजूरी दी, जिनकी कुल लागत लगभग 12,328 करोड़ रुपये है। इन परियोजनाओं में शामिल हैं: –
*(1) देशलपार – हाजीपीर – लूना और वायोर – लखपत नई लाइन*
*(2) सिकंदराबाद (सनथनगर) – वाडी तीसरी और चौथी लाइन*
*(3)भागलपुर-जमालपुर तीसरी लाइन*
*(4) फुर्केटिंग – न्यू तिनसुकिया दोहरीकरण*
उपरोक्त परियोजनाओं का उद्देश्य यात्रियों और माल दोनों का निर्बाध और तेज़ परिवहन सुनिश्चित करना है। ये पहल कनेक्टिविटी प्रदान करेंगी और यात्रा सुविधा में सुधार के साथ-साथ रसद लागत को कम करेंगी और तेल आयात पर निर्भरता कम करेंगी। इसके अतिरिक्त, ये परियोजनाएँ CO2 उत्सर्जन को कम करने में योगदान देंगी , जिससे टिकाऊ और कुशल रेल संचालन को बढ़ावा मिलेगा। ये परियोजनाएँ अपने निर्माण के दौरान लगभग 251 (दो सौ इक्यावन) लाख मानव-दिवसों के लिए प्रत्यक्ष रोजगार भी उत्पन्न करेंगी।
प्रस्तावित नई रेल लाइन कच्छ क्षेत्र के सुदूर इलाकों को कनेक्टिविटी प्रदान करेगी। यह गुजरात के मौजूदा रेलवे नेटवर्क में 145 रूट किमी और 164 ट्रैक किमी जोड़ेगी, जिसकी अनुमानित लागत 2526 करोड़ रुपये है। परियोजना की पूर्ण होने की समय-सीमा 3 वर्ष है। गुजरात राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के अलावा, यह नई रेल लाइन नमक, सीमेंट, कोयला, क्लिंकर और बेंटोनाइट के परिवहन में भी मदद करेगी। इस परियोजना का सामरिक महत्व यह है कि यह कच्छ के रण को कनेक्टिविटी प्रदान करेगी। हड़प्पा स्थल धोलावीरा, कोटेश्वर मंदिर, नारायण सरोवर और लखपत किला भी रेल नेटवर्क के अंतर्गत आएंगे क्योंकि 13 नए रेलवे स्टेशन जोड़े जाएँगे जिससे 866 गाँवों और लगभग 16 लाख आबादी को लाभ होगा।
कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए, स्वीकृत मल्टी-ट्रैकिंग परियोजनाओं से लगभग 3,108 गाँवों और लगभग 47.34 लाख की आबादी और एक आकांक्षी जिले (कलबुर्गी) तक कनेक्टिविटी बढ़ेगी, जिससे कर्नाटक, तेलंगाना, बिहार और असम राज्यों को लाभ होगा। कर्नाटक और तेलंगाना में फैली 173 किलोमीटर लंबी सिकंदराबाद (सनथनगर) – वाडी तीसरी और चौथी लाइन के पूरा होने की समय-सीमा 5012 करोड़ रुपये है और यह पाँच साल में पूरी होगी, जबकि बिहार में 53 किलोमीटर लंबी भागलपुर – जमालपुर तीसरी लाइन के लिए यह तीन साल है और इसकी लागत 1156 करोड़ रुपये है। 194 किलोमीटर लंबी फुरकेटिंग – न्यू तिनसुकिया दोहरीकरण परियोजना का कार्य, जिसकी लागत 3634 करोड़ रुपये है, चार वर्षों में पूरा होगा।
बढ़ी हुई लाइन क्षमता से गतिशीलता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय रेलवे की परिचालन दक्षता और सेवा विश्वसनीयता में सुधार होगा। ये मल्टी-ट्रैकिंग प्रस्ताव परिचालन को सुव्यवस्थित करने और भीड़भाड़ को कम करने के लिए तैयार हैं। ये परियोजनाएँ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के नए भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं, जो क्षेत्र के लोगों को व्यापक विकास के माध्यम से “आत्मनिर्भर” बनाएगा जिससे उनके रोज़गार/स्वरोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।
ये परियोजनाएँ पीएम-गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के अनुसार बनाई गई हैं, जिनका उद्देश्य एकीकृत योजना और हितधारक परामर्श के माध्यम से मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक दक्षता को बढ़ाना है। गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, बिहार और असम राज्यों के 13 जिलों को कवर करने वाली ये चार परियोजनाएँ भारतीय रेलवे के मौजूदा नेटवर्क को लगभग 565 किलोमीटर बढ़ा देंगी।
ये कोयला, सीमेंट, क्लिंकर, फ्लाईऐश, स्टील, कंटेनर, उर्वरक, कृषि उत्पाद और पेट्रोलियम उत्पादों आदि जैसी वस्तुओं के परिवहन के लिए आवश्यक मार्ग हैं। क्षमता वृद्धि कार्यों के परिणामस्वरूप 68 एमटीपीए (मिलियन टन प्रति वर्ष) की अतिरिक्त माल ढुलाई होगी। रेलवे, पर्यावरण अनुकूल और ऊर्जा कुशल परिवहन माध्यम होने के कारण, जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने और देश की रसद लागत को कम करने, तेल आयात (56 करोड़ लीटर) कम करने और CO2 उत्सर्जन (360 करोड़ किलोग्राम) कम करने में मदद करेगा, जो 14 करोड़ पेड़ लगाने के बराबर है।
प्रस्तावित परियोजनाओं का उद्देश्य कोयला, कंटेनर, सीमेंट, कृषि वस्तुओं, ऑटोमोबाइल, पीओएल, लोहा एवं इस्पात तथा अन्य वस्तुओं के परिवहन के लिए महत्वपूर्ण मार्गों पर लाइन क्षमता बढ़ाकर रसद दक्षता में वृद्धि करना है। इन सुधारों से आपूर्ति श्रृंखलाओं के अनुकूलन और त्वरित आर्थिक विकास में सहायता मिलने की उम्मीद है।