सहरसा में दिखी एशियाई शीतकालीन जलपक्षी

सहरसा : सहरसा से गुजरने वाली कोसी नदी इन दिनों एक खास वजह से चर्चा में है। वन विभाग के सौजन्य से यहां एशियाई शीतकालीन जलपक्षी गणना कार्यक्रम चलाया गया, जिसमें विशेषज्ञों और वनकर्मियों की टीम ने नदी के विस्तृत जलाशय क्षेत्र में दुर्लभ और प्रवासी पक्षियों की मौजूदगी दर्ज की। इस सर्वे ने साबित किया है कि कोसी क्षेत्र जैव विविधता और प्रवासी पक्षियों के आकर्षण का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभर रहा है।
वन विभाग के अनुसार, यह गतिविधि न केवल पक्षियों के संरक्षण को बढ़ावा देती है, बल्कि स्थानीय पर्यावरण जागरूकता में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है।
आप देख रहे हैं सहरसा के पास बहने वाली कोसी नदी। इसी नदी के किनारे वन विभाग की टीम नौहट्टा से शुरू होकर सलखुआ प्रखंड तक फैले 30 किलोमीटर क्षेत्र में नाव से यात्रा करते हुए जलपक्षियों की गणना कर रही है। टीम कैमरे और विशेष उपकरणों की मदद से सामान्य व दुर्लभ—दोनों तरह की प्रजातियों की पहचान कर रही है और इनका विस्तृत डेटा विभाग को सौंपा जाएगा।
वन प्रमंडल पदाधिकारी के निर्देश पर यह सर्वे विशेषज्ञों और वनकर्मियों द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया गया।
वन प्रमंडल पदाधिकारी भरत चिंतपल्ली ने जानकारी दी—
“सर्वे में कुल 76 प्रजातियों के 3,300 से अधिक जलपक्षी मिले हैं। इनमें कई प्रवासी प्रजातियाँ भी शामिल हैं, जो हर साल सर्दियों में यहां पहुंचती हैं।” उन्होंने आगे बताया कि “तीन दिनों की इस गणना में 36 से अधिक डॉल्फ़िन और 100 से ज्यादा कछुए भी देखे गए हैं। यह कोसी क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता और अनोखे पारिस्थितिकी तंत्र का प्रमाण है। यदि इसे गंभीरता से विकसित किया जाए, तो यह क्षेत्र भविष्य में एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है।” उन्होंने पर्यावरणविदों से समय-समय पर सर्वे एवं मॉनिटरिंग में सहयोग देने की भी अपील की।
वन विभाग के रेंजर वीरेंद्र कुमार राय ने बताया—
“नाव से नौहट्टा से सलखुआ के बीच 30 किलोमीटर नदी मार्ग में कई दुर्लभ विदेशी प्रवासी पक्षी मिले हैं। यह हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है। इनके संरक्षण के लिए अब विशेष मुहिम चलाई जाएगी।”
सर्वेयर टीम से जुड़े विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा और ज्ञानचंद्र ज्ञानी ने कार्यक्रम के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा—
“यह सर्वे 2022 से लगातार किया जा रहा है। इससे पक्षी संरक्षण और पर्यावरण जागरूकता को बल मिलता है। हर साल 20–25 नई प्रजातियाँ इस क्षेत्र में दर्ज होती हैं। तीन दिनों के इस अभियान में हमें कई दुर्लभ प्रवासी पक्षियों के बसेरे मिले हैं। स्थानीय लोगों को भी इनके महत्व और संरक्षण के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है।”
विशेषज्ञों के अनुसार, कोसी नदी जो कभी “बिहार का शोक” के रूप में जानी जाती थी, अब अपनी जैव विविधता के कारण एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में पहचानी जा रही है।
यदि इस क्षेत्र का संरक्षण और विकास जारी रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब कोसी नदी क्षेत्र को पक्षी अभयारण्य का दर्जा मिले और यह देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनकर उभरे—साथ ही कोसी प्रभावित क्षेत्रों के विकास का नया मार्ग भी प्रशस्त हो।




