“कान्हा का अनोखा प्रयोग : रिवाइल्डिंग से जंगल लौटे अनाथ बाघ” “विशेष प्रशिक्षण और निगरानी से शावकों को मिला नया जीवन, बाघ संरक्षण के क्षेत्र में बना प्रेरक मॉडल”
सैयद आसिम अली
पत्रकार
भारत में बाघ केवल एक जंतु नहीं, बल्कि शक्ति, साहस और जैव विविधता के प्रतीक हैं। किन्तु विडंबना यह है कि कभी भारत में हरित अरण्यों में सहजता से विचरने वाला यह जीव आज संरक्षण की चुनौती का सामना कर रहा है। इस पृष्ठभूमि में कान्हा टाइगर रिज़र्व का रिवाइल्डिंग प्रयास अनाथ बाघों के जीवन और उनके दीर्घकालिक संरक्षण हेतु एक अनूठा और प्रेरक प्रयोग है।कान्हा टाइगर रिज़र्व का यह रिवाइल्डिंग प्रयास अनाथ बाघों के संरक्षण की दिशा में एक बेहद महत्वपूर्ण कदम है। सामान्यतः जंगल में यदि बाघ शावक अपनी माँ को खो देते हैं, तो उनके जीवित रहने की संभावना बहुत कम हो जाती है, क्योंकि उन्हें शिकार करना, जंगल में रहना और खुद को सुरक्षित रखना नहीं आता।प्राकृतिक परिस्थितियों में यदि किसी शावक की माँ की मृत्यु हो जाती है, तो उसका जीवित रह पाना अत्यंत कठिन हो जाता है। शिकार करना, जंगल में दिशा–बोध, तथा आत्मरक्षा जैसे कौशल माँ से ही सीखे जाते हैं। ऐसे में रिवाइल्डिंग पहल इन अनाथ शावकों के लिए जीवनदान सिद्ध होती है।इस प्रयोग के अंतर्गत अनाथ शावकों को एक नियंत्रित एवं सुरक्षित प्राकृतिक क्षेत्र में रखा जाता है। यहाँ उन्हें मानवीय हस्तक्षेप से बचाते हुए शिकार करना, शिकार की पहचान करना तथा जंगल में स्वतंत्र रूप से जीना सिखाया जाता है। धीरे–धीरे जब वे आत्मनिर्भर हो जाते हैं, तब उन्हें पुनः जंगल में छोड़ दिया जाता है।
कान्हा नेशनल पार्क और रिवाइल्डिंग(प्राकृतिक आवास और जैव विविधता को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया) का वैश्विक महत्व कई दृष्टियों से बहुत बड़ा है।जैव विविधता का केंद्र: मध्य प्रदेश में स्थित कान्हा नेशनल पार्क भारत का एक प्रमुख टाइगर रिज़र्व है, जहाँ बंगाल टाइगर, बारहसिंगा (स्वैम्प डियर), भालू, तेंदुआ, जंगली कुत्ता और कई पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। कान्हा को “बारहसिंगा की भूमि” कहा जाता है। यहाँ के संरक्षण प्रयासों से विलुप्ति के कगार पर पहुँचा यह दुर्लभ हिरण फिर से फल-फूल रहा है। यह पार्क “रिवाइल्डिंग” और species रिकवरी का एक जीवित उदाहरण है।कान्हा नेशनल पार्क ईको-टूरिज़्म और पर्यावरण शिक्षा का भी वैश्विक मॉडल है। रिवाइल्डिंग का उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र में apex predators और keystone species को वापस लाना है, जिससे खाद्य श्रृंखला और प्राकृतिक चक्र संतुलित हों।
कार्बन कैप्चर और जलवायु परिवर्तन से मुकाबला: स्वस्थ जंगल कार्बन सिंक का काम करते हैं।रिवाइल्डिंग वनों के पुनर्जनन में मदद कर वैश्विक तापमान वृद्धि को कम करने में सहायक है। विश्व स्तर पर कई प्रजातियाँ विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं। रिवाइल्डिंग उन्हें प्राकृतिक आवास लौटाकर दीर्घकालिक संरक्षण का अवसर देता है। रिवाइल्डिंग से इकोटूरिज्म बढ़ता है, जिससे स्थानीय समुदायों को आजीविका मिलती है। यूरोप में भेड़ियों की वापसी, अमेरिका में बाइसन का संरक्षण और भारत में कान्हा जैसे प्रयास यह दिखाते हैं कि रिवाइल्डिंग मानव और प्रकृति के सह-अस्तित्व का भविष्य हो सकता है।
कान्हा नेशनल पार्क को दुनिया में रिवाइल्डिंग सक्सेस स्टोरीज में गिना जाता है। यहाँ बारहसिंगा की आबादी पुनर्जीवित हुई।शिकारियों की वापसी (टाइगर, वाइल्ड डॉग) से खाद्य श्रृंखला संतुलित हुई।घासभूमि और जंगल प्रबंधन ने प्राकृतिक आवास को पुनर्स्थापित किया।इसे landscape लेवल कंसर्वेशन (बफर जोन, कॉरिडोर आदि) का मॉडल माना जाता है, जो वैश्विक स्तर पर लागू किया जा सकता है।कान्हा नेशनल पार्क भारत में Rewilding का सफल उदाहरण है और यह दुनिया को यह सिखाता है कि यदि सही संरक्षण रणनीति अपनाई जाए तो संकटग्रस्त प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
संरक्षण की दृष्टि से महत्ता
1. अनाथ शावकों का जीवन–रक्षण – जो शावक अन्यथा मृत्यु को प्राप्त हो जाते, उन्हें नया जीवन मिलता है।
2. प्राकृतिक व्यवहार का संवर्धन – यह पहल बाघों को कृत्रिम कैद की बजाय उनके प्राकृतिक आवास में टिकाए रखने में सहायक है।
3. जैव विविधता का संरक्षण – बाघों की संख्या तथा उनकी जीन विविधता दोनों को सुरक्षित करने का मार्ग प्रशस्त होता है।
4. नवाचार का उदाहरण – यह प्रयोग न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए वन्यजीव संरक्षण की अभिनव पद्धति प्रस्तुत करता है।
कान्हा टाइगर रिज़र्व का rewilding प्रयास केवल बाघों के जीवन–रक्षण की पहल नहीं, बल्कि मानव–वन्यजीव संबंधों में संतुलन और सतत विकास की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। यह पहल दर्शाती है कि यदि वैज्ञानिक दृष्टि और संवेदनशीलता से कार्य किया जाए, तो संकटग्रस्त प्रजातियों को नया जीवन प्रदान कर उनके उज्ज्वल भविष्य की राह प्रशस्त की जा सकती है।
कान्हा नेशनल पार्क और rewilding का वैश्विक महत्व
प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता का संरक्षण आज पूरे विश्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। वनों की कटाई, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन ने अनेक प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर पहुँचा दिया है। ऐसे समय में rewilding—अर्थात् प्राकृतिक आवासों और प्रजातियों को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया—वैश्विक स्तर पर एक आशा की किरण के रूप में उभरकर सामने आई है। भारत का कान्हा नेशनल पार्क इसका एक जीवंत उदाहरण है, जहाँ संरक्षण और rewilding की पहल ने संकटग्रस्त प्रजातियों को नया जीवन दिया है।
कान्हा नेशनल पार्क का महत्व
कान्हा नेशनल पार्क मध्य प्रदेश के मंडला और बालाघाट जिलों में स्थित है और इसे 1955 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला। 1973 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत शामिल किया गया।
जैव विविधता: यहाँ बंगाल टाइगर, तेंदुआ, भालू, जंगली कुत्ते, गौर और 300 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
बारहसिंगा का संरक्षण: कान्हा को “बारहसिंगा की भूमि” कहा जाता है। यह हिरण विलुप्ति के कगार पर था, लेकिन संरक्षण और आवास सुधार से अब इसकी संख्या लगातार बढ़ रही है।
पर्यावरणीय प्रयोगशाला: यह पार्क भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए रिवाइल्डिंग का सफल उदाहरण माना जाता है।
Rewilding का वैश्विक महत्व
Rewilding का मुख्य उद्देश्य पारिस्थितिक तंत्र को उसकी प्राकृतिक अवस्था में लौटाना है।
1. पारिस्थितिकी संतुलन की पुनर्स्थापना: जब शीर्ष शिकारी (जैसे टाइगर, भेड़िया) और keystone species अपने प्राकृतिक आवास में लौटते हैं तो खाद्य श्रृंखला संतुलित होती है।
2. जलवायु परिवर्तन से मुकाबला: स्वस्थ जंगल कार्बन अवशोषण करते हैं, जिससे वैश्विक तापमान वृद्धि की गति धीमी होती है।
3. जैव विविधता का संरक्षण: संकटग्रस्त प्रजातियों को प्राकृतिक आवास लौटाकर उनकी स्थायी सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
4. स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण: Rewilding से इकोटूरिज्म को बढ़ावा मिलता है, जिससे ग्रामीणों की आय और रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
5. वैश्विक उदाहरण: यूरोप में भेड़ियों की वापसी, अमेरिका में बाइसन संरक्षण और भारत में कान्हा जैसे प्रयास बताते हैं कि मनुष्य और प्रकृति का सह-अस्तित्व संभव है।
यूरोप में भेड़ियों की वापसी: कठोर संरक्षण क़ानूनों और प्राकृतिक वनों की पुनर्बहाली ने भेड़ियों को फिर से वहाँ स्थापित किया। आज वे कई देशों में पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा बन रहे हैं।
अमेरिका में बाइसन संरक्षण: कभी लगभग विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुके बाइसन को संरक्षित क्षेत्रों और प्रजनन योजनाओं के माध्यम से बचाया गया। अब वे फिर से विशाल घासभूमियों के संतुलन को बनाए रख रहे हैं।
भारत में कान्हा (मध्य प्रदेश): यह क्षेत्र बाघ और बारहसिंगा जैसे प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय समुदायों को भी संरक्षण और पर्यटन से जुड़ने का अवसर मिला, जिससे सह-अस्तित्व की दिशा में संतुलन बना।
कान्हा और Rewilding का आपसी संबंध
कान्हा नेशनल पार्क को विश्व स्तर पर rewilding सक्सेस स्टोरी माना जाता है। यहाँ की प्रमुख उपलब्धियाँ हैं—
बारहसिंगा की सफल वापसी: यह प्रजाति लगभग विलुप्त हो गई थी, लेकिन कान्हा के प्रयासों से अब इसकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।
शीर्ष शिकारी का संरक्षण: टाइगर और वाइल्ड डॉग की मौजूदगी से शिकार प्रजातियों की संख्या संतुलित बनी रहती है।
आवास पुनर्स्थापन: घासभूमि, जलाशयों और जंगलों का संरक्षण किया गया है, जिससे पूरा पारिस्थितिक तंत्र मजबूत हुआ है।
लैंडस्केप स्तर संरक्षण: बफर ज़ोन और वन्यजीव कॉरिडोर बनाए गए हैं, जिससे पशु अपनी प्राकृतिक गतिशीलता बनाए रख सकें।
कान्हा नेशनल पार्क न केवल भारत का गौरव है, बल्कि यह विश्व के लिए यह संदेश देता है कि सही रणनीति और सामूहिक प्रयास से किसी भी पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्जीवित किया जा सकता है। Rewilding केवल संरक्षण का ही नहीं, बल्कि एक नई सोच का प्रतीक है, जो जलवायु संकट, जैव विविधता ह्रास और मानव-प्रकृति संघर्ष के समाधान की दिशा दिखाता है। इस दृष्टि से कान्हा की सफलता पूरे विश्व के लिए प्रेरणा है और यह सिद्ध करती है कि प्रकृति को यदि अवसर दिया जाए तो वह स्वयं को पुनः जीवित करने की अद्भुत क्षमता रखती है।
भोपाल के वन विहार से 3–4 माह के दो अनाथ बाघ शावकों को कान्हा टाइगर रिज़र्व के घोरेला रिवाइल्डिंग सेंटर (मुक्की रेंज) में लाया गया। यह कदम वन्य प्राणी संरक्षण की एक सफल पहल का हिस्सा है, जहां शावकों को स्वतंत्र जंगल में जीने के लिए तैयार किया जाता है।
देख–रेख और प्रशिक्षण अवधि
शासन की मार्गदर्शिका के अनुसार, इन शावकों को दो से ढाई वर्ष तक घोरेला बाड़े में रखा जाता है। इस अवधि में उनका व्यवहारांकन, स्वास्थ्य और शिकार कौशलों का अध्ययन विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। इसके बाद उनकी योग्यतानुसार उन्हें स्वतंत्र वन क्षेत्र में छोड़ा जाता है।
रिवाइल्डिंग सेंटर की संरचना और इतिहास
यह प्रशिक्षण केंद्र 2007 में स्थापित किया गया था, और तब से अब तक लगातार कई शावकों को जंगल में फिर से शामिल करने में सफलता मिली है।
केंद्र में तीन प्रमुख एन्क्लोजर (खंड) हैं:
एक 8 एकड़ का एन्क्लोजर जिसमें 20–30 माह आयु वर्ग के बाघ शामिल होते हैं जो हिरणों का शिकार कर रहे हैं।
एक छोटा बाड़ा जिसमें 3–4 माह के शावक भोजन (दूध, अंडा, मैश्ड मांस) के साथ प्रशिक्षण पाते हैं।
प्रशिक्षण के लक्ष्य
शुरुआती चरण में शावकों को धीरे-धीरे कड़ी खाद्य श्रृंखला (दूध से शुरुआत, फिर मुर्गा और बाद में हिरण, बकरियाँ) से परिचित कराया जाता है।लगभग एक वर्ष पश्चात ये शावक एक “कैर्निवोर-प्रूफ” बाड़े में गिराए जाते हैं, जहां वे स्वतंत्र रूप से शिकार करना सीखते हैं।यदि कोई शावक 4–5 दिनों में एक हिरण शिकार कर लेता है, तो इसे प्रशिक्षण पूरा मान लिया जाता है।
कान्हा के हार्ड-ग्राउंड बारासिंगा (Swamp Deer) एक समय विलुप्त होने की स्थिति में पहुँच गए थे। वैज्ञानिक प्रबंधन, वनभूमि पुनर्जीवन और स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी से इनकी संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। पार्क प्रशासन ने घासभूमियों का पुनर्निर्माण किया, जलस्रोतों का संरक्षण किया और प्राकृतिक शिकार-शिकारी संबंध को संतुलित किया। यह केवल एक प्रजाति का पुनर्जीवन नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने का प्रयास था।
Rewilding प्रयोग ने यह भी सिद्ध किया कि मानव और वन्यजीव सहअस्तित्व संभव है। स्थानीय ग्रामवासियों को संरक्षण गतिविधियों में भागीदार बनाकर उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया गया। इसने संरक्षण को केवल सरकारी प्रयास न रहकर सामुदायिक आंदोलन बना दिया।
आज कान्हा मॉडल को विश्वभर में एक सफल संरक्षण पद्धति के रूप में देखा जाता है। यह प्रयोग इस बात का उदाहरण है कि यदि वैज्ञानिक दृष्टि, दीर्घकालिक योजना और सामुदायिक सहयोग साथ आएँ, तो प्रकृति स्वयं को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखती है।
कान्हा नेशनल पार्क (मध्य प्रदेश) को “टाइगर रिज़र्व” और “कठोर वन्यजीव प्रबंधन” के उदाहरण के रूप में जाना जाता है। यहाँ किया गया rewilding प्रयोग (विशेष रूप से बारासिंगा यानी Swamp Deer को बचाने और उनके प्राकृतिक आवास को पुनर्जीवित करने के प्रयास) वास्तव में वैश्विक स्तर पर सराहनीय है।
बारासिंगा संरक्षण: कान्हा ही वह स्थान है जहाँ “हार्ड ग्राउंड बारासिंगा” की अंतिम बची हुई आबादी पाई जाती थी। सक्रिय संरक्षण व rewilding के कारण आज उनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।
आवास पुनर्निर्माण: घासभूमियों (grasslands) को पुनर्जीवित कर, प्राकृतिक शिकार व शिकारी (predator-prey balance) को संतुलित किया गया।
स्थानीय समुदायों को भी संरक्षण प्रक्रिया में शामिल कर सहभागी संरक्षण मॉडल विकसित किया गया।
कान्हा का यह प्रयोग दिखाता है कि यदि वैज्ञानिक प्रबंधन, स्थानीय सहयोग और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाया जाए तो विलुप्ति की कगार पर पहुँची प्रजातियों को भी बचाया जा सकता है।
यह प्रयोग न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को यह संदेश देता है कि rewilding प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य की दिशा में एक व्यवहार्य व सफल रणनीति हो सकती है।
घोरेला री-वाइल्डिंग सेंटर (मुक्की रेंज, कान्हा टाइगर रिज़र्व) से संबंधित जानकारी
बाड़े या पिंजरे कैसे बनाए गए हैं और प्रशिक्षण कैसे दिया जाता है, इसके बारे कुछ बातें हम आपको बताते है
मुक्की रेंज, कान्हा टाइगर रिज़र्व में पारंपरिक हिरण आवास क्षेत्र के भीतर एक विशेष रूप से निर्मित बाड़ा बनाया गया है, जिसे इन-सीटू (प्राकृतिक स्थल पर) कहा जाता है।
इस बाड़े में स्थानीय जलाशय, वन, घासभूमि और खनन क्षेत्र शामिल हैं, जो लगभग 1 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। इस आंतरिक क्षेत्र का उपयोग बछड़ों के पालन-पोषण और पोषण के लिए किया जाता है।
इस बाड़े के चारों ओर 35 हेक्टेयर का शाकाहारी प्राणी बाड़ा बनाया गया है, जो बाघों को प्राकृतिक शिकार आधार (शिकार प्रजातियाँ) उपलब्ध कराता है।
11 हेक्टेयर के बाघ बाड़े को 3.7 मीटर ऊँची मजबूत चेन-लिंक बाड़ से पूरी तरह घेर दिया गया है। इस 11 हेक्टेयर क्षेत्र को इसी प्रकार की बाड़ से दो हिस्सों में विभाजित किया गया है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर बछड़ों को अलग-अलग रखा जा सके।
निगरानी हेतु इस बाड़े के चारों ओर चार वॉच टॉवर बनाए गए हैं, साथ ही दो द्वार भी हैं, जिनसे प्रशिक्षित हाथी और विभागीय वाहन अंदर प्रवेश कर निगरानी कार्य में सहयोग कर सकते हैं।
35 हेक्टेयर के शाकाहारी प्राणी बाड़े को भी 2.5 मीटर ऊँची मजबूत चेन-लिंक बाड़ से घेरा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य चीतल (हिरण) जैसे शाकाहारी जीवों को सुरक्षित रखना है, जिन्हें आसपास की घासभूमि और मैदानों से नियमित रूप से छोड़ा जाता है। यह बाड़ा बछड़ों के लिए आवश्यकतानुसार शिकार उपलब्ध कराता है।
इसके अतिरिक्त, मुख्य बाड़े के पास एक छोटा क्वारंटीन हाउस (अलग आश्रय) भी बनाया गया है। इस क्वारंटीन हाउस का उपयोग 3 महीने से 1 वर्ष की आयु के बाघ के शावकों के पालन हेतु किया जाता है।
जब शावकों में पर्याप्त शारीरिक शक्ति और शिकार करने की क्षमता विकसित हो जाती है, तो उन्हें क्वारंटीन हाउस से 11 हेक्टेयर बड़े बाड़े में स्थानांतरित कर दिया जाता है।इस क्वारंटीन हाउस में भी दो अलग-अलग बाड़े हैं, ताकि दो बाघों का एक साथ पालन किया जा सके। आवश्यकता अनुसार इसमें नियमित रूप से प्राकृतिक घास और हरा चारा उपलब्ध कराया जाता है।
बाड़े की पूरी घेराबंदी को स्थानीय घास की परतों से ढककर अपारदर्शी बना दिया गया है, ताकि बाघों को शांति और एकांत प्रदान किया जा सके। बाड़े में तैनात कर्मचारी बाघों की सभी गतिविधियों का एक रजिस्टर में लेखा-जोखा रखते हैं। इसमें शिकार, शिकार-आधार की आपूर्ति, पशु चिकित्सक द्वारा नियमित जांच, अन्य कर्मचारी और अधिकारियों द्वारा निगरानी, तथा शिकार की खपत जैसी जानकारियाँ निर्धारित प्रारूप में दर्ज की जाती हैं।बाड़े से 500 मीटर की दूरी पर एक नियंत्रण कक्ष भी स्थापित किया गया है, ताकि जानवरों की प्रभावी ढंग से निगरानी की जा सके।सभी एन्क्लोजरों में सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं, ताकि मानवीय हस्तक्षेप न्यूनतम रहे।
घोरेला री-वाइल्डिंग सेंटर (मुक्की रेंज, कान्हा टाइगर रिज़र्व) मॉडल की सफलता
इस मॉडल से अब तक कई बाघों को सफलतापूर्वक जंगल में रिहा किया जा चुका है। इसे मिशाल बनाकर “घोरेला मॉडल” के नाम से जाना जाता है।WTCA (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण) ने घोरेला मॉडल को अपनाया है, और इस री-वाइल्डिंग पद्धति को अब अन्य संरक्षण योजनाओं में भी अनुकरणीय मॉडल माना जाता है ।घोरेला री-वाइल्डिंग सेंटर कान्हा की वन्यजीव संरक्षण रणनीति में एक मिसाल बन चुका है। यहां विकसित अनुसंधान और प्रशिक्षण मॉडल ने बाघों को मुक्त जीवन की तैयारी कराने में मील का पत्थर साबित किया है। न केवल यह प्रयास स्थायी संरक्षण के लिए असरदार सिद्ध हुआ है, बल्कि इसने मध्य प्रदेश और भारत में अन्य रिज़र्वों की आबादी रणनीतियों को भी मजबूत किया है।।उदाहरण के लिए, 2007 से अब तक बाघों को पन्ना, नौरादेही, सतपुड़ा और संजय टाइगर रिज़र्व, रतापानी नेशनल पार्क में पुनर्स्थापित किया गया है।
फील्ड डायरेक्टर कान्हा टाइगर रिज़र्व के अनुसार, अब तक 10 बाघों को इसी प्रक्रिया में सफलतापूर्वक रिवाइल्ड किया गया है।