मोहनपुरा सिंचाई परियोजना में 19 गांव की पूरी और 9 गांव की आंशिक आबादी डूब क्षेत्र में आने के बाद इनका पुनर्वास किया गया
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राजगढ़ की मोहनपुरा सिंचाई परियोजना के विस्थापितों का छलका दर्द, 7 साल बाद कितनी बदली जिंदगी
मोहनपुरा सिंचाई परियोजना में 19 गांव की पूरी और 9 गांव की आंशिक आबादी डूब क्षेत्र में आने के बाद इनका पुनर्वास किया गया.
राजगढ़: मोहनपुरा सिंचाई परियोजना में विस्थापित हुए ग्रामीणों को भले ही 7 साल पूरे हो चुके हों लेकिन आज भी उन्हें उन सुविधाओं का इंतजार है जिसका उनसे वादा किया गया था. सालों से अपने गांव में रहकर खेती करने वाले किसानों को भले ही शहर के नजदीक बसा दिया हो लेकिन जब उनसे सुविधाओं की बात की जाए तो उनका दर्द छलक उठता है.
कहते हैं कि यहां से भला तो उनका कच्चा मकान और खेतीबाड़ी की जमीन थी. डूब क्षेत्र में आने के बाद हमें अपना आशियाना छोड़ना पड़ा. वैसे तो इस परियोजना में कई गांव के लोगों को विस्थापित किया गया था. ऐसे ही एक पुनर्वास स्थल मोहनपुरा में ईटीवी भारती की टीम पहुंची जहां कराड़िया गांव के विस्थापितों ने बताया कि पिछले 7 सालों में उनकी जिंदगी कितनी बदली.
विस्थापितों का छलका दर्द
ने जब विस्थापितों से बात की तो आंखों में आंसू और दिल पर एक बोझ सा लिए वे पुनर्वास पर कई सवाल उठाते नजर आते हैं. ग्रामीणों के आरोप तो कई हैं लेकिन इसमें 5 साल तक फ्री बिजली और पानी का मुद्दा अहम है. उनका कहना है कि 2018 में विस्थापित किए गए थे, उस दौरान सरकार ने सर्वसुविधा युक्त कॉलोनी बनाकर देने के साथ 5 साल तक मुफ्त बिजली और पानी जैसी कई सुविधाओं का वादा किया गया था लेकिन ऐसा आज तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
विस्थापितों का दर्द उन्हीं की जुबानी
डूब क्षेत्र में आने के कारण कराड़िया गांव के लोगों को अपना बसा बसाया आशियाना छोड़ना पड़ा. खेत, मकान, दुकान सब डूब क्षेत्र में आ गए. सरकार ने मुआवजा देकर नई जमीन पर बसा दिया और उस दौरान बड़े-बड़े वादे किए. इन्हीं वादों को लेकर ईटीवी से बात करते हुए संजू बाई का दर्द छलक उठता है.
संजू बाई कहती हैं कि “हमारा गांव डैम में डूब गया. यहां बसाने से पहले प्लॉट, बिजली, पानी फ्री में देने के साथ प्लाटों की रजिस्ट्री भी फ्री कराने का आश्वासन मिला था लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया. मुआवजा तो मिला लेकिन बहुत कम. यहां से कोसों दूर महंगे दामों पर थोड़ी सी जमीन खरीदी और उसी से गुजर बसर कर रहे हैं. जिस समय से यहां आए हैं तभी से बिजली और पानी का बिल भर रहे हैं
रोजगार के नाम पर मिला आश्वासन’
कराड़िया गांव के ही नीरज गौड़ बताते हैं कि “शासन और प्रशासन ने मेरे माता-पिता से वादा किया था कि आपके बच्चों की किसी फैक्ट्री या कारखाने में नौकरी लगवाएंगे और उन्हें रोजगार मिल जाएगा. लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया, हम आज भी मेहनत मजदूरी कर रहे हैं.” ऐसे ही एक विस्थापित रोड़जी कहते हैं कि “गांव में चौकीदार के पद पर कार्यरत थे. यहां बसाए जाने के बाद अब वे पानी की टंकी पर नौकरी कर रहे हैं लेकिन उन्हें 11 महीने से वेतन नहीं मिला
जिम्मेदार कहते हैं कि लिखित में लाइए’
यहां जितने भी विस्थापितों से बात करो सभी का अपना दर्द है. राजपाल खींची कहते हैं कि “कॉलोनी का हाल देख लो, चारों तरफ गंदगी पसरी है, सड़कों के हाल देख लो. बिजली बिल जमा नहीं करो तो लाइट काट दी जाती है. शिकायत लेकर जब जिम्मेदारों के पास जाओ तो कहा जाता है कि आप लोगों ने उस समय ये सभी वादे लिखवाकर क्यों नहीं लिए. गांव में हम भले ही खेती करते थे लेकिन राजा की तरह रहते थे. फ्री में प्लॉट देने का वादा भी सरकार ने पूरा नहीं किया.”
‘भू-अर्जन अधिनियम में फ्री जैसा कोई प्रावधान नहीं’
मोहनपुरा पुनर्वास कॉलोनी के लोगों के द्वारा लगाए गए आरोपों पर परियोजना के समन्वयक अशोक दीक्षित कहते हैं कि “क्या ग्रामीणों के पास इन बातों का कोई लिखित प्रमाण है जो वे फ्री बिजली, पानी और दूसरे वादों की बात कर रहे हैं. यदि नहीं हैं तो भू-अर्जन अधिनियम में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि कुछ भी फ्री दिया जाए. हम बिजली, पानी का कनेक्शन फ्री दे सकते हैं लेकिन इसका इस्तेमाल करने पर बिल तो भरना पड़ेगा
विस्थापितों को मिली सुविधाओं पर क्या कहते हैं जिम्मेदार
देश की बड़ी सिंचाई परियोजनाओं में से एक मोहनपुरा वृहद सिंचाई परियोजना का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 जून 2018 में किया था. मोहनपुरा परियोजना के समन्वयक अशोक दीक्षित ने ईटीवी भारत का जानकारी देते हुए बताया कि “मोहनपुरा परियोजना में साल 2015 में हुए डूब क्षेत्र के विस्तृत सर्वे में 19 गांव की पूर्ण आबादी और 9 गांव की आंशिक आबादी प्रभावित हुई थी. इसके अतिरिक्त 27 अन्य गांवों की केवल जमीन ही प्रभावित हुई है. जिसमें कुल 4418 परिवार प्रभावित हुए थे.
मोहनपुरा परियोजना के समन्वयक अशोक दीक्षित ने बताया कि इन परिवारों में से 515 परिवारों के पुनर्वास के लिए 4 पूर्ण विकसित कॉलोनियां तैयार की गई थीं. ये पुनर्वास कॉलोनी राजगढ़, कालूखेड़ा, बानपुर और राजलीबे में बनाई गई थीं. यहां सभी को प्लॉट और पुनर्वास अनुदान दिया गया. 3903 परिवारों को एकमुश्त पुनर्वास अनुदान के रूप में 5-5 लाख रुपए दिए गए. साथ ही इन परिवारों को छूट दी गई थी कि जिस कॉलोनी में चाहें वो बसने के लिए स्वतंत्र हैं.
पाटन रोड स्थित राजगढ़ कॉलोनी में 313 परिवारों को 5 लाख रुपए के साथ प्लॉट दिए गए. इसके अलावा 202 परिवारों को 3 अन्य पुनर्वास कॉलोनी में प्लॉट और 2 लाख रुपए प्रति परिवार को दिए गए. इसके अलावा जिन ग्रामीणों की जमीन डूब में गई थी उन्हें इन्हें 10 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर का मुआवजा इस परियोजना में शासन का भू-अर्जन और पुनर्वास में 1060 करोड़ रुपए व्यय हुए