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एक संघठन के जीवन का प्रारम्भ होना और 100 वर्ष तक चलते रहना एक अनुठा उदाहरण है। इसके जीवनमूल्य सिद्वांत जो प्रारम्भ में थे 100 वर्ष बाद भी नही बदले। संघ के संस्थापक के मन में यह नही था कि संघ 100 वर्ष पूर्ण करे वह चाहते थे

संघ की 100 वर्ष की यात्रा पुरी पूर्ण होने पर देश भर शताबदी निमित स्वयं सेवकों के, संघ हित चतंकों के व्यापक स्तर पर देष में कार्यक्रम के शुभरम्भ की प्रथम कड़ी यह कार्यक्रम राजगढ़ नगर की बस्तियों के स्वयंसेवक और संघ हितचिंतकों के पंथ संचलन के इस कार्यक्रम के प्रांगण में उपस्थित स्वयसेवक, मातृ शक्ति बन्धु भगिनी।
एक संघठन के जीवन का प्रारम्भ होना और 100 वर्ष तक चलते रहना एक अनुठा उदाहरण है। इसके जीवनमूल्य सिद्वांत जो प्रारम्भ में थे 100 वर्ष बाद भी नही बदले। संघ के संस्थापक के मन में यह नही था कि संघ 100 वर्ष पूर्ण करे वह चाहते थे कि स्वयं उनकी इसी देह इन्ही ऑखों से इस उदेष्य को सांकार देख सकूं। लेकिन परिस्थितियों के कारण मार्ग थोडा लम्बा चला लेकिन इस दौरान यह भी पता चला कि संकट है किन्तु आंषा के चिन्ह भी दिख रहे है। इस यात्रा का अवलोकन करने पर पता चलता है कि संघ शुन्य से विराट स्वरूप मे ंपरिवर्तत हो गया।
में 1960 जब स्वयं सेवक बना आज मुझे 69 वर्ष हो गये। पहले कार्यक्रम में स्वयं सेवक की संख्या केवल 175 थी। पश्चिम एशिया में जाइए या यूरोप के अंदर जाइए कल से आज तक चली आई हुई संस्कृति के चिन्ह सब तरफ दिखाई देते हैं तो विश्व के अंदर जिस देश का इतना सांस्कृतिक प्रभाव था वह हजारों साल तक दूसरों से लड़ते लड़ते लड़ते उसे समाज के अंदर कुछ मूलभूत कमियां आ गई और इस नाते से जो सभ्यता में संस्कृति में, ज्ञान में, विज्ञान में हमसे कम थे ऐसी जातियां हमारे ऊपर राज करती रही थी इस देश की आजादी के लिए देश की स्वतंत्रता के लिए सब तरह की धाराएं चल रही थी क्रांति के माध्यम से शस्त्र उठा करके अंग्रेजों को यहां से भगाया जाए तो क्रांतिकारी आंदोलन की धारा थी समाज का साधारण व्यक्ति जीवन के छोटे-छोटे काम देष के प्रति स्वदेशी के लिए कर रहा हूं इस भाव से चले। गांधी जी का अहिंसा आंदोलन चला तो, उसे समय सूत कातना, शादी के कपड़े पहनना लेकिन उसके पीछे जो भाव रहता था कि में देश के लिए कर रहा हूं यह साधारण आदमी का देश के लिए कुछ करना है ऐसा भाव था। स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद जैसे महापुरूषों को विचार आया कि हजारों साल तक अलग-अलग देशों से अलग-अलग समूह आकर के इस देश पर राज कर रहे हैं अंग्रेज का भी जो राज है व्यापारी के रूप में आया कुछ हजार आए होंगे उसे समय इस देश के अंदर 30 करोड लोग रहते थे और आने वाला अंग्रेजी भाषा नहीं जानता था और 30 करोड लोगों की वह मालिक बन जाते हैं तो गलती किसकी है वह अंग्रेज की है कि हमारी है और फिर उसमें से एक निष्कर्ष निकाला यह समाज की जो मूल कमजोरी है इसको जब तक मूल रूप से नहीं हटाएंगे तब तक कोई समाधान नहीं निकलेगा हम स्वतंत्र भी हो जाएंगे कुछ महापुरुषों के द्वारा या कोई भगवान अवतार आकर के नहीं चलेगा उस समाज का संपूर्ण विश्व के अंदर भारत को अगर किसी विशेषण से पुकारा जाता था तो वह कहते थे कि भारत विश्व गुरु है इस देश में समृद्धि इतनी थी कि पुराने जमाने में उल्लेख करते थे उसके लिए दूसरा विशेषण की भारत सोने की चिड़िया है जब विश्व में भारत के प्रभाव का विचार करते हैं आसपास के देशों के अंदर जाते हैं वह साउथ ईस्ट एशिया के देश इंडोनेशिया को कंबोडिया हो लो दूर दराज के क्षेत्र के अंदर भी ब्रह्मा के विष्णु के शिव के मंदिरों के अवशेष दिखाई देते हैं विश्व का सबसे बड़ा कोई अगर मंदिर कहानी है वह भारत में नहीं है वह कंबोडिया के अंदर
पश्चिम एशिया में जाइए या यूरोप के अंदर जाइए कल से आज तक चली आई हुई संस्कृति के चिन्ह सब तरफ दिखाई देते हैं तो विश्व के अंदर जिस देश का इतना सांस्कृतिक प्रभाव था वह हजारों साल तक दूसरों से लड़ते लड़ते लड़ते उसे समाज के अंदर कुछ मूलभूत कमियां आ गई और इस खाते से जो सभ्यता में संस्कृत में ज्ञान में विज्ञान में हमसे कम थे ऐसी जातियां हमारे ऊपर राज करती रही थी इस देश की आजादी के लिए देश की स्वतंत्रता के लिए सब तरह की धाराएं चल रही थी क्रांति के माध्यम से शस्त्र उठा करके अंग्रेजों को यहां से भगाया जाए तो क्रांतिकारी आंदोलन की धारा थी समाज का साधारण व्यक्ति इतनी बड़ी रिस्क नहीं ले सकता तो जीवन के छोटे-छोटे काम लेकिन में यह स्वदेशी के लिए कर रहा हूं इस भाव से चले तो गांधी जी का अहिंसठ आंदोलन चला तो उसे समय सूट काटना शादी के कपड़े पहनना लेकिन उसके पीछे जो भाव रहता था कि हमें देश के लिए कर रहा हूं तो साधारण आदमी को देश के लिए कुछ करना है दयानंद स्वामी विवेकानंद योगी अरविंद कैसे हुए जिन्होंने कहा कि देश स्वतंत्र तो हो जाएगा लेकिन उसके बाद देश कैसा होना चाहिए तो उन्होंने की क्या कारण है कि हजारों साल तक अलग-अलग देशों से अलग-अलग समूह आकर के इस देश पर राज कर रहे हैं अंग्रेज का भी जो राज है व्यापारी के रूप में आया कुछ हजार आए होंगे उसे समय इस देश के अंदर 30 करोड लोग रहते थे और आने वाला अंग्रेजी भाषा नहीं जानता था और 30 करोड लोगों की वह मालिक बन जाते हैं तो गलती किसकी है वह अंग्रेज की है कि हमारी है और फिर उसमें से एक निष्कर्ष निकाला यह समाज की जो मूल कमजोरी है इसको जब तक मूल रूप से नहीं हटाएंगे तब तक कोई समाधान नहीं निकलेगा हम स्वतंत्र भी हो जाएंगे कुछ महापुरुषों के द्वारा या कोई भगवान अवतार आकर के नहीं चलेगा उस समाज
और उसी में से एक साधना की प्रक्रिया व्यक्ति का जो निर्माण करना है उसकी प्रक्रिया राष्ट्रीय चलने वाली शाखा के रूप में उन्होंने प्रारंभ किया की 1 घंटे के लिए आई है उसे समय अपना घर परिवार व्यवसाय अपनी आशा सब छोड़ करके उसे 1 घंटे के अंदर अपना देश अपना समाज अपना धर्म अपनी संस्कृति अपना इतिहास अपनी भविष्य की भूमिका इस पर विचार करिए अपने बारे में 1925 में यह बीच बोया गया और वह जो बीच हुआ थी देश की अवस्था को देखकर ह््रदय के अंदर जो पीड़ा थी वह संघ के कार्य के रूप में बाहर अभिव्यक्त हुई और बीच में से जैसे पासपोर्ट होता है और धीरे-धीरे एक विराट बनता है उसे दिशा के अंदर और पिछले 100 साल के अंदर संघ की यात्रा चाली यह व्यक्ति निर्माण कैसा करना है अपने सामने रखें एक इस देश के हर व्यक्ति के अंतकरण के अंदर इस धरती के प्रति भारत माता के हर पहाड़ हर नदी हर नगर हर जगह की जमीन उसके प्रति एक अप्रति भक्ति उसके हृदय के अंदर होना चाहिए देश भक्ति का भाव प्रत्येक व्यक्ति के मन में हो यह पहली चीज कोई कमजोर है कोई निर्बल है कोई निर्धन है कोई अशिक्षित है तो जो सफल है जो सक्षम है जो संस्कृत है उसने उनको अपने सामान बनाना और यह अगर करना है तो समाज के प्रति जो दुख है दर्द उसके प्रति अपने हृदय के अंदर संवेदना होनी चाहिए और इसलिए एक देशभक्त और दूसरा का सामाजिक संवेदनाऔर तीसरा जो है कि भारत का विश्व में अगर गुणगान था तो केवल या की समृद्धि के कारण नहीं था यहां के लोगों का जो चरित्र था यहां के जो जीवन मूल्य थे यहां की जो व्यवस्था थी जिसके कारण से यहां एक ऐसे आदमी का निर्माण हुआ जो केवल मनुष्य की चिंता नहीं करता था तो पशुओं के बीच चिंता करता था पक्षियों के बीच चिंता करता था संपूर्ण सृष्टि को जो है ईश्वर में मानकर व्यवहार करने की आदत भारतीय समाज में डाली और इसलिए तीसरी बात कहा की संस्कृति का गौरव और यह धारा में से उदय हुआ उसको आधुनिक काल के अंदर हमने एक शब्द में निहित किया हिंदू और इसलिए कहा कि यह जो हिंदू समाज है इसके मन में हर व्यक्ति के मन में देश की भक्ति आए समाज की संवेदनाएं और संस्कृति का गौरव उसके मन के अंदर आए और इन बातों को लेकर संघ चला रहा और 100 साल की यात्रा का जब सीमाओं का नाप करेंगे हर प्रसंग के अंदर इसके चिन्ह आपको दिखाई देंगे के लिए देश की जमीन के
जब भी चुनौती आई जब संग में भूमिका की देश आजाद होती पार्क आक्रमण हुआ भारतीय सेवा के उतरने के लिए गोलियों की बौछार में जम्मू का एयरपोर्ट तैयार किया सैनिकों को एमुलेशन्स इधर-उधर पड़े थे तो पहुंचा था उसमें कहीं स्वयंसेवक शहीद हो गए और तब से लेकर वर्तमान समय तक भी यह जो भक्त का भाव है आज तो जम्मू कश्मीर की स्थिति बदल गई है लेकिन बीच में जब उग्रवाद प्रचंड हुआ था हिंदुओं का पलायन हुआ था और घाटी के बाद फिर जम्मू से भी हिंदुओं को निकाला जाए उग्रवादियों के जब प्रेस में चले उग्रवादियों ने शाखा चलने वाले कार्यकर्ता को धमकी दी की शाखा बंद करो और गांव खाली कर दो अन्यथा अपने जीवन से हाथ धो बैठे हुए थी उनको अस्पताल में भर्ती किया गया और यह लोग कहते हैं कि हम इस धरती को छोड़कर चले जाएं लेकिन हम कैसे छोड़ सकते हैं और एक प्रसंग को इस भाव को कि हम मर सकते हैं लेकिन इसको छोड़ नहीं सकते हैं तो उसे पत्र में उन्होंने लिखा है एक साहित्य में कहीं घटनाएं रहती है तो उसे तरह का उल्लेख करते हुए की एक जंगल था उसमें पेड़ था पेड़ पर पक्षी बैठे थे अचानक पेड़ में आग लगती है और आज बढ़ाते बढ़ाते धीरे-धीरे जिन शाखों पर पत्तों पर पत्तों के पास पक्षी बैठे हुए वहां तक आज पहुंचने लगती है एक कभी इसको देख रहा है लेकिन पक्षी वहां बैठे हुए उड़ नहीं रहे हैंतो कभी उनको कहता है कि आग लगी इस वृक्ष को जलने लगे पास तुम क्यों पंछी चल रहे हैं पंख तुम्हारे पास के
हमारा है यही चलेंगे इसके साथ सामाजिक संवेदना की बात कहेंगे तो देश के अंदर केरल से लेकर कन्याकुमारी तक और अरुणाचल के तवांग से लेकर के और कक्षा के कोने तक किसी भी प्रकार का समाज जीवन में संकट आया हो बाढ़ आई हो दुर्घटना हुई हो किसी प्रकार का दुख दर्द हो और केवल संकट के समय में नहीं तो संपूर्ण देश के अंदर जहां है तो लाखों कार्यकर्ता काम करते हुए दिखाई देते हैं और तीसरी जो एक वायुमंडल खड़ा हुआ कि अपने धर्म स्थान अपने सांस्कृतिक जीवन वाले उसके प्रति एक घोड़े का भाव यह तीनों बातों को लेकर के प्रारंभ से इनको लेकर चलाएं और 100 साल बाद भी आज भी उन बातों को पकड़ कर आगे बढ़ रहे हैं और इसलिए आज इस 100 साल की यात्रा के अंदर जो पहले एक लक्ष्य था कि देश में परिवर्तन लाना है तो देश व्यापी हमको बनना पड़ेगा इस देश के अंदर एक 7580 हजार स्थान के ऊपर प्रतिदिन राष्ट्र की साधना करने वाले लोगों के समूह खड़े हो गए और इसलिए आने वाले इस देश में 6 लाख के लगभग गांव है इस प्रकार का समाज का चिंतन करने वाला संस्कृति के गौरव के भाव रखने वाला देश भक्ति वाला एक समूह खड़ा हो और यह समूह सब कुछ नहीं कर सकेगा तो आने वाले समय के अंदर फिर संपूर्ण समाज के अंदर जो सज्जन शक्ति है उसको भी अपने साथ में जोड़ते हुए जिस तरह का भारत हम चाहते हैं उसे दिशा के अंदर आगे बढ़ाने की यात्रा अभी शताब्दी वर्ष के साथ में आगे प्रारंभ होगी क्योंकि इतने बड़े देश के अंदर मूलगामी परिवर्तन लाना है तो यह किसी एक संगठन के भूतों का विषय है और जब सबका सहयोग होता है तभी सफलता मिलती है भारत माता मंदिर के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी कहां करते थे कि राम जब वनवास में गए तो धर्म का विनाश करना और धर्म की स्थापना करना असुरों का विनाश करना और संतों की रक्षा करना तो उसके लिए जो कुछ उनको खड़ा करना था योगो से मिले अनेकों योगी मिले अनेकों महा योगी मिले लेकिन योगी और महायोगी मिले उससे काम पूरा नहीं हुआ आगे चलकर जब बंदर और भालू के रूप में सहयोगी मिले खाली योगी लोग खड़े हुए तो इतनी बड़ी जो उसे समय रावण की जो 87 उसको एचएस करके और फिर से जो एक ऐसा वायुमंडल खड़ा किया जिससे ऋषियों के मुनियों के नदियों के अंदर आनंद का संचार हुआ धर्म प्रेमी सब लोग अपने को सुरक्षित महसूस करने लगे तो इस नाते से संपूर्ण समाज का सहयोग लेकर के और आने वाले समय के अंदर इस यात्रा को आगे बढ़ना तो यह एक प्रथम बात है
लाल बहादुर शास्त्री की भी जयंती थी गांधी जी की भी जयंती थी सब एक साथ मिले तो नागपुर अक्टूबर का कार्यक्रम हुआ तो दुनिया के भी कुछ देशों के लोग निरीक्षण के लिए बुलाई थी इंडोनेशिया से थाईलैंड से अमेरिका से यूके से समझने की कोशिश की गई, वह समय भी देता है वह पैसा भी लगता है बाकी काम भी करता है । संघ सर चालक के साथ दोपहर में वार्तालाप के समय इन देशों के लोग आए तो उन्होंने कहा कि हमारे देश में भी बहुत समस्याएं हैं तो हमें ऐसा लगता है कि हमारे देश भी ऐसा संघ होना चाहिए तो यह जो प्रयोग है तो उसको लगता है कि व्यक्ति चरित्रवान बने और समाज की सेवा करे।
भारत माता तेरा वैभव अमर रहेगा विश्व में गूंजे हमारी भारतीय, जन जन उतारे आरती, हमें ऐसा जो बनना चाहते हैं अभी उसे दिशा के अंदर रास्ता बाकी है आज देश में एक इतने दिनों के कारण से एक सामाजिक जीवन में भी वातावरण बनाए राजनीतिक क्षेत्र में जागरण हुआ है इसलिए देश के अंदर भिन्न-भिन्न शहरों के नाम बदल दिए थे, जिनके नाम बदल गए थे वह फिर से अपनी इलाहाबाद प्रयागराज हो गया औरंगाबाद संभाजी नगर हो गया
भगवान राम का मंदिर स्थापित हुआ तो एक मंदिर मात्र नही रहा है। यह एक तरह की भारत की जो सांस्कृतिक यात्रा है उसका एक पुनर्जागरण का पुनर प्रतिस्थापन का प्रतीक बन गया है लेकिन फिर भी जो भारत की मूल विशेषताएं थी उसे तरह का भारत बनने की अभी प्रक्रिया बाकी है और इसलिए शताब्दी के अंदर जो अपना आगामी चरण सोचा है वही है संगठन का व्यक्ति निर्माण का कार्य जो है यह भौगोलिक रूप से देश व्यापी हुआ है इसकी व्याप्ति और भी नीचे तक करने की प्रक्रिया तो चलाएंगे लेकिन इससे आगे जो महत्व का चरण है की संपूर्ण समाज को इस प्रकार का बनाना है तो समाज को करना है तो समाज का आचार व्यवहार बदलने और यही सबसे जटिल प्रश्न है लेकिन व्यवहार करते समय उसकी जो आदत है उसका जो लालच है उसके मन के अंदर जो काम बने हैं जीवन वह चलती है और इसलिए हम देखते हैं कि अगर समझ की बात हो तो देश में कोई कमी नहीं है आजकल टेक्नोलॉजी का जमाना है और 24 घंटे के चैनल है प्रातकाल में कोई भी चैनल खोलेंगे तो हर एक के ऊपर कोई ना कोई संत महात्मा किसी भी संप्रदाय का हो वह प्रवचन करता हुआ हमको दिखाई देगा और प्रवचन में इच्छा मत करो सही हम रखो चरित्रवान बनो सद्गुणी बानो दूसरे की चिंता करो और अपने धर्म ग्रंथो के बारे में उन सब का उल्लेख करेगा तो ज्ञान है लेकिन जो मन अभी डाला नहीं है आदत नहीं पड़ी है स्वभाव नहीं बदला और यह श्लोक और यह वचन हम कितने संतों से सुनते हैं लेकिन संकट में हम कहते हैं कि भ्रष्टाचार बड़ा गहरा बैठा हुआ है।
वह चित्र नहीं आएगा कि संघ अकेला नहीं करेगा तो समाज की सभी सामाजिक संस्थाएं धार्मिक संस्थाएं सेवा भाव से काम करने वाले व्यक्ति सभी मिलकर के एक निश्चित दिशा के अंदर आने वाले 20 25 वर्षों के अंदर इस समाज जीवन के अंदर बदलना है तो सच में भी बदलना है आदत में भी बदलना है भारत के निर्माण के लिए आने वाले समय के अंदर समाज के सामने एक संकल्प रखा है कि सब के सहयोग से संघ काम करेगा तो समझ में पांच प्रकार का परिवर्तन लाने की आवश्यकता है उसको संघ में पांच परिवर्तन कहां अभी एक अक्टूबर को जब संघ की 100 साल की यात्रा पूरी होने पर किसी यात्रा के स्मरण उत्सव के संदर्भ पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने एक डाक टिकट चालू किया और एक कॉइन जारी किया तो उसे समय इस देश के प्रधानमंत्री ने भी पांच परिवर्तन का आह्वान किया है उन्होंने भी इनको दोहराया।
शताब्दी वर्ष के अंदर संघ की आगे की कुछ की जो यात्रा है और इस नाते से यह जो पांच परिवर्तन की दिशा में सामाज में बदल लाना है और जैसा मैंने कहा कि केवल समझ के स्तर नहीं आदत को भी बदलना है। उसके लिए प्रयत्न करना है क्योंकि उसके बिना सफलता नहीं मिलेगी महाभारत पांडव गीता में एक प्रसंग अता है सब जानते हैं की कौरव पांडव का युद्ध समाप्त हो जाए इसलिए अंतिम समझौता वार्ता के लिए भगवान कृष्ण धृतराष्ट्र के दरबार में जब जाते हैं कितनी महिलाओं के मांग का सिंदूर कितनी बहने जो है उनके भाई चले जाएंगे तो कुल मिलाकर समझौता कर लिया जाये। दुर्योधन बोलता है धर्म के 10 लक्षण है वह जानता हूं उसे पर प्रवचन भी दे सकता हूं मैं जानता हूं लेकिन स्वभाव है वह करने के लिए गलत है लेकिन आदत इतनी गहरी पड़ गई है कि मैं उसे छोड़ नहीं पा रहा हूं और यह जो जटिल प्रश्न है तो उसके बारे में समाज के स्तर पर एक व्यापक कार्य हमको प्रारंभ करना पड़ेगा। सामाज प्रमुख है उसे समाज का जो मूल आधार है वह है विविध समूह होंगे विविधता संप्रदाय होंगे लेकिन संपूर्ण समाज बनना चाहिए हमको दिखाई देता है इसलिए सामाजिक समरसता और तीसरा इस दुनिया के अंदर मनुष्य अकेला नहीं है पेड़ जो है वनस्पतियां जो है ऑक्सीजन छोड़ता है और उसे हम सब प्राणी जगत जिंदा है अगर पर्यावरण समाप्त हो गया तो मनुष्य भी समाप्त हो जाएगा और इसलिए सृष्टि के अंदर सबका संतुलन करना है इसलिए पर्यावरण का संरक्षण यह तीसरा सामाजिक स्वभाव के अंदर परिवर्तन की बात है और फिर चौथ कहा कि यह सब अगर करना है तो पहले हम क्या है हम कौन हैं हमारा अतीत क्या है हमारी विशेषता क्या है उसकी जानकारी होना और दूसरा हमारे जीवन की इसलिए स्वभाव और स्वदेशी जीवन शैली यह चौथी बात है। सामाजिक जीवन के अंदर जब हम व्यवहार करते हैं तो नागरिक कर्तव्य का पालन करने वाला अगर समाज है तो वह समाज अनुशासित होकर उन्नति की ओर दुनिया के अंदर आगे बढ़ता है और इसलिए पांचवी बात कही नागरिक कर्तव्य और यह पांच प्रकार के परिवर्तन संपूर्ण देश व्यापी हो सबसे पहले मेरा अपना घर जो है वह संस्कार वान हो।
आज आप यूरोप के देशों में जाएंगे नीदरलैंड जाइए डेनमार्क चाहिए कहीं भी जाएंगे लगभग 65 से लेकर 70 प्रतिषत परिवार सिंगल पैरंट फैमिली के मिलेंगे या तो मन है या आप है क्यों व्यक्ति बात और एक तो जो और व्यक्ति अकेला ही होने लगा तो एडजस्ट करना भूल जाता है इसलिए परिवार भी अगर चलने संयुक्त परिवार भी चलने कर भाई को भी अगर साथ में चलना है तो एक दूसरे को समझना भी पड़ता है परिवारों के बंटवारे के अंदर लेता है जन्म लेने के समय जब इसका गठन होना है उसे समय किसी ने उसकी पीठ पर हाथ नहीं रखा उसको उसने नहीं मिला उसको संस्कार नहीं मिले तो जो आज दृश्य हमको चारों ओर दिखाई देते हैं वह परिवर्तित नहीं होंगे और हमारे यहां ऐसा समाज किसने बना क्योंकि भारत में जो मूल्य का यह पश्चिम में व्यक्ति को परिवार मूल बात मानकर हमारा पूरा व्यवहार है मैं उसकी ज्यादा व्याख्या में नहीं जाता लेकिन आप देखेंगे कि हमारे यहां हमारे बच्चे हैं मौसी है तो यह सब मिलकर के फिर हमारा व्रत परिवार है संयुक्त परिवार हैउसके घर में कोई नौकर है बड़ी उम्र का है तो छोटे बच्चों को शिक्षा देते थे कि रामू नाम का नौकर है तो उसको पुकारा कैसे तो मां-बाप बताते थे कि उनको काका या कोई महिला तो उसे काकी कहा जाता है।
पूरा देश भी परिवार है और आगे चलकर कहा कि पूरी जो पृथ्वी है तो श्लोक हमारे यहां बना व्यक्ति गणना कुटुंबकम सारी पृथ्वी जो एक परिवार है और केवल मनुष्य तक सृष्टि में जितने उनको भी अपने परिवार से जुड़ा है इसलिए हमारे बिल्ली मौसी हो गई चंदा मामा हो गया गाय माता हो गई तुलसी माता हो गई गंगा जमुना सारी नदियां जो है यह माता हो गई तो हम देखेंगे कि सारे जीवन के व्यवहार को हमने परिवार से बनाया और इसलिए मैंने कहा यह परिवार मूल्य भारत का सारे नहीं होगा लेकिन यह परिवार संस्था अगर समाप्त हो गई और यह पश्चिमी सब एटा की हर घर के अंदर अपने परिवार के अंदर धन कमाएंगे बाकी सब करेंगे ठीक है लेकिन यह जो नई पीढ़ी है उसके निर्माण में हमारा रोल होना चाहिए केवल कांटेक्ट पर नहीं देना चाहिए की हॉस्टल में भेज देंगे गांव के अंदर जाएंगे क्यों अपना करियर बना अपना उनकी चिंता करने का जरूरत है दूसरी बात जो मैंने समरसता की कही उड़ान के रूप में हमारे उदाहरण देने की जरूरत नहीं है सबको ईश्वर में देखो हमारे महापुरूषों ने अपने जीवन की राम कथा में राम जी का वर्णन करते समय मुझे प्रसंग आता है कि शबरी के झूठे बेर कैसे खाएं और निषाद को कैसे गले लगाया और कथा कार्य उसका मार्मिक चित्रण वर्णन करता है तो भाव का जो भक्त सुन रहा है उसकी आंखों से आंसू आते हैं इसलिए महापुरुषों के जीवन से नहीं चलेगा तो समाज जीवन के बारे में समाज के अंदर एक समस्या समाज के समूह के अंदर सद्भाव तो जो सामाजिक नेतृत्व कर रहे हैं यह सब मिलकर के आने वाले समय के अंदर अपने-अपने समूह के अंदर इस मानस परिवर्तन की जरूरत है।
पर्यावरण बात कीजाय तो सौ कुओं का एक बावड़ी के बराबर पुण्य मिलता है एक तालाब बनाने के बराबर होता है और आखरी में कहां शत्रु पुत्रम समूह धर्म 100 पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है एक वृक्ष लगाते हैं तो उतना पुण्य मिलता है। पर्यावरण स्वदेशी दिशा और स्व जीवन शैली पर सर संघ चालक करते हैं आजकल की स्वदेशी जीवन शैली का विचार करना तो भाषा भूषण भजन भजन भवन और भ्रमण के भाषा अच्छे प्रकार से बच्चों ने जानना चाहिए आजकल ज्यादा प्रगतिशील परिवार हो गए तो मातृभाषा में उनको समझने भी नहीं है भोजन लेना चाहिए लेकिन समोसा हमको थोड़ा नहीं लगे और पिज़्ज़ा बर्गर करेंगे तो ध्यान में आएगा भजन भजन है उसे घर की भी सच्चा ऐसी हो घर में प्रवेश करते समय बाकी करते समय वह भी सिखाए केवल भाषण चलती रहे तो अपना जो भवन है कभी प्रकृति का सौंदर्य देखने जाना है तो भ्रमण किधर करना समाज जीवन में हम ध्यान देते हैं तो यह एक तरह से स्वदेशी जीवन शैली इसका चलेगा और अंतिम जो बात थी यह सब करते समय जब सार्वजनिक जीवन का व्यवहार होता है तो एक अच्छे नागरिक के रूप में भारत का हर व्यक्ति एक नागरिक के नाते नागरिक कर्तव्य का पालन करें तो सब कुछ ठीक हो जाएगा एक प्रसंग हुआ था तो कोलकाता के परिचित परिवार था उनको मिलने गई उसे मोहल्ले में उनकी तो 1 दिन में जो घर के मालिक थे उन्होंने मोहल्ले के कुछ लोगों को इससे परिचय के लिए बुलाया तो मूल्य के कुछ लोग आए और यह ऑस्ट्रेलिया की चलने लगी मैडम आप जानती है कोलकाता में एक करोड़ लोग रहते हैं जनसंख्या की श्रीमान जी कोलकाता को साफ करने के लिए और कितने लोगों की जरूरत है। सभ्यता पूर्वक व्यवहार सके वह इसलिए नागरिक कर्तव्य परिवर्तन की बात इन दिशाओं के अंदर आने वाले जैसा मैंने कहा कि एक परिवर्तन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है देश उसे दिशा में आगे बढ़ रहा है उसकी गति को बढ़ाकर और आने वाले 20 25 वर्षों के अंदर संपूर्ण देश के सभी लोग मिलकर के एक सामूहिक रूप से प्रयास करेंगे तो एक बड़ा प्रचंड की प्रक्रिया को हम गति दे सकेंगे और देश फिर से अपनी जड़ों की ओर जुड़ते हुए जो आज आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में बढ़ रहा है और विश्व के अंदर भी अपने जीवन मूल्यों को देने की कोशिश कर रहा है जब अभी-अभी की-20 के समय भारत को और विश्व के इन देशों की अध्यक्षता का अवसर मिला था तो भारत ने अपना वसुदेव कुटुंबकम का उसी को अपना घोषवाक्य बनाया था और यह भारतीय विचार संपूर्ण विश्व के देशों में टी 20 के माध्यम से गया जिसका अंग्रेजी रूपांतरण किया था कि वन अर्थ वन फैमिली वन फ्यूचर पृथ्वी एक है एक परिवार है और सब का एक सामूहिक भविष्य है तो उसे दिशा के अंदर यह भूमिका हो उसे एक भाव को लेकर यह 100 साल की यात्रा चली है और महापुरुषों ने अपने जीवन में सपना देखा कि ऐसा भारत बनने वाला है वह एक वाक्य करके मैं अपनी बात पूरी करता हूं स्वामी विवेकानंद एक बार ध्यान में थे और ध्यान में उन्होंने जो भारत के भविष्य का चित्र दिखा तो उनका एक प्रसिद्ध उदाहरण है जिसमें वह कहते हैं कि मैं भविष्य में नहीं देखा नहीं मुझे उसे देखने की चाहत है लेकिन एक दृश्य में अपने मनुष्य के समक्ष स्पष्ट रूप से देख रहा हूं कि हमारी प्राचीन भारत माता अपनी पुरानी युगों पुरानी निद्रा को छोड़कर जागृत हो रही है तो उठो और उसे उसके सिंहासन पर बिठाकर संपूर्ण विश्व के अंदर शांति का संवाद का समर भाई का संदेश वह दिव्य ज्ञान जो है उसको वह प्रवाहित करें इस प्रकार का भारत बनाने की दिशा में और भगवान हम सबको प्रेरणा दे समर्थ दे और हम सब मिलकर के और यह भाभी लक्ष्य है उसे प्रताप की दिशा में बढ़ सके इतना ही निवेदन करते हुए मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं

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