*‘‘कृषि विज्ञान केन्द्र, राजगढ़ द्वारा गाजरघास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह मनाया‘‘
राजगढ़ कृषि विज्ञान केन्द्र राजगढ़ द्वारा खरपतवार अनुसंधान के निर्देशानुसार 16 से 22 अगस्त तक कृषकों के हितार्थ गाजरघास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह मनाया गया। जिसमें कृषि विज्ञान केन्द्र राजगढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. एस.के. कौशिक, प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रूपेन्द्र खाण्डवे, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. ए.के. मिश्रा, वैज्ञानिक डॉ. लाल सिंह, वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी श्रीमति गजाला खान द्वारा गाजरघास जागरूकता सप्ताह में कृषक एवं महिला कृषकों, बच्चों आदि को प्रशिक्षण, पोस्टर, प्रायोगिक रूप से जागरघास का परिचय, उससे होने वाले हॉनिकारक प्रभाव तथा उसका समेकित प्रबंधन की जानकारी दी गई।
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. कौशिक द्वारा गाजरघास के परिचय में बताया गया कि इसका तना अत्याधिक शाखा युक्त होता है, पत्तियां गाजर की पत्तियों के समान दिखती है। प्रत्येक पौधा 25 से 50 हजार तक बहुत छोटे बीज पैदा करता है। इसके बीजों में सुसुप्ता अवस्था नहीं होने से बीज पककर नमी पाकर पुनः अंकुरित हो जाते है तथा इसका पौधा 3-4 महीने में अपना जीवन चक्र पूर्ण कर लेता है। इस प्रकार से एक वर्ष में 2-3 पीढी पूर्ण हो जाती है।
प्रधान वैज्ञानिक डॉ. खाण्डवे द्वारा गाजरघास का हानिकारक प्रभाव के बारे में बताया कि गाजरघास एक विषेली हानिकारक खरपतवार है, जो फसलों, मानव स्वास्थ्य, पशुधन, वातावरण के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। मनुष्यों में यह त्वचा एवं स्वसन संबंधी एलर्जी का कारण बनता है। पशुओं में विषाक्तता पैदा कर दुग्ध की गुणवत्ता प्रभावित होती है। गाजरघास से उत्सर्जित एलिलोपैथिक रसायन अन्य पौधो की वृद्वि में बांधा डालते है। जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आती है। इससे प्राकृतिक जैव विविधता का भी विनाश होता है। गाजरघास एक बहुयामी खतरा है इससे निपटने के लिये सामूहिक और सतत् प्रयास आवश्यक है।
वैज्ञानिक प्रभारी स्वच्छता अभियान डॉ. सिंह द्वारा गाजरघास का समेकित प्रबंधन के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी गई। गाजरघास को फूल आने से पहले उखाडकर कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्ट बना कर नियंत्रण कर सकते है। गाजरघास को उखाडते समय हाथ में दस्तानो तथा सुरक्षात्मक कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए। रसायनिक खरपतवार दवाईयों जैसे- मेट्रिब्यूजिन (0.3-0.5 प्रतिशत), 2,4-डी (1.0-1.50 प्रतिशत) एवं ग्लायफोसेट (1.0-1.50 प्रतिशत) आदि का छिड़काव फूल आने से पहले करके नियंत्रण किया जा सकता है। गाजरघास का नियंत्रण उसके प्राकृतिक शत्रुओं जैसे- मेक्सीकन बीटल को गाजरघास से ग्रसित स्थानों पर छोड़ देने से इस कीट के लार्वा एवं वयस्क गाजरघास की पत्तियां को चट कर जाते है। प्रतिस्पर्धी वनस्पति जैसे चकोड़ा, हिप्टिस एवं जंगली चौलाई आदि से गाजरघास को आसानी से विस्थापित किया जा सकता है।
वैज्ञानिक डॉ. मिश्रा एवं श्रीमति खान द्वारा केन्द्र पर आगन्तुक कृषक एवं महिला कृषकों, युवाओं, बच्चों एवं अधिकारी, कर्मचारियों को गाजरघास उन्मूलन जागरूकता के दुष्प्रभावो एवं उन्मूलन के विषय में सतत् जानकारी दी जा रही है।