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ग्राम टोपा में परंपरागत ढंग से मनाया गया नवाखाई पर्व।

दशहरे के दिन आदिवासी समाज ने नई फसल को अर्पित कर मनाया नवाखाई पंडुम

ग्राम टोपा के गोंड समाज नुवाखाई में पुरखा देवता का पूजन करते

भाटापारा(टोपा)। एक ओर जहां पूरे देश में विजयदशमी (दशहरा) का पर्व रावण दहन के साथ धूमधाम से मनाया गया, वहीं दूसरी ओर ग्राम टोपा सहित जिले भर के गांवों में आदिवासी समाज ने अपनी परंपराओं के अनुसार नवाखाई पंडुम मनाया।

यह पर्व नई फसल (धान) के आगमन पर बूढ़ालपेन, ठाकुर जोहरनी और पूर्वजों के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर होता है। नवाखाई का अर्थ होता है “नया अन्न खाना”। इस दिन परिवार के मुखिया पहले पकाए गए नए धान के चावल से खीर बनाकर साजा पत्ते में देवी-देवताओं और पितरों को अर्पित करते हैं, इसके बाद पूरा परिवार और समुदाय एक साथ मिलकर वही अन्न ग्रहण करता है।

नवाखाई को लेकर गांव में विशेष उत्साह देखा गया। महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में पूजा-अर्चना की, जबकि युवाओं ने मांदर की थाप पर पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत कर माहौल को संगीतमय बना दिया। बुजुर्गों ने बताया कि यह पर्व सिर्फ फसल के आगमन का नहीं, बल्कि प्रकृति, कृषि और परंपरा के बीच सामंजस्य का प्रतीक है।

इस दौरान गांव में किसी भी प्रकार के खेतों से अनाज या सब्जी लेने पर भी एक तरह की रोक होती है, जब तक कि नवाखाई न हो जाए। यह मान्यता है कि जब तक देवी-देवताओं को पहला अन्न अर्पित न किया जाए, तब तक मनुष्य को उसका उपभोग नहीं करना चाहिए।

ग्राम के रूपेश नागवंशी ने बताया, हमारे समाज में नवाखाई का विशेष महत्व है। यह पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और आने वाली पीढ़ियों को हमारी संस्कृति से परिचित कराता है।

नवाखाई पर्व के माध्यम से आदिवासी समाज अपनी पहचान, संस्कृति और प्रकृति के साथ अपने रिश्ते को मजबूत करता है।

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