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भारत की चिंताओं के बीच तिब्बत में ब्रहृमापुत्र पर चीन बना रहा विशाल डैम, निर्माण तेज

गुवाहाटी। चीन ने दक्षिण-पूर्वी तिब्बत के निंगची क्षेत्र में यारलुंग त्सांगपो नदी पर एक विशाल जलविद्युत परियोजना का निर्माण शुरू कर दिया है। सरकारी मीडिया के अनुसार, चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग शनिवार को परियोजना के शुभारंभ समारोह में शामिल हुए। बीजिंग ने 2023 में इस अरबों डॉलर की परियोजना को मंजूरी दी थी।

यह जलविद्युत बांध जिसे दुनिया की सबसे बड़ी ऐसी परियोजना कहा जा रहा है, उससे 60,000 मेगावाट बिजली पैदा करेगा। यारलुंग त्सांगपो नदी अरुणाचल प्रदेश में सियांग के रूप में प्रवेश करती है और बांग्लादेश में बहने से पहले असम में ब्रह्मपुत्र बन जाती है।

चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी को सुखाए जाने की चिंताओं के बीच अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और असम के उनके समकक्ष हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल के दिनों में इस परियोजना पर विपरीत विचार व्यक्त किए हैं।

खांडू ने इस परियोजना को एक ‘पानी का बम’ और अपने राज्य के लोगों और उनकी आजीविका के लिए अस्तित्व का खतरा बताया। उन्होंने कहा कि यह बांध गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि चीन ने अंतर्राष्ट्रीय जल संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और उस देश पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

खांडू ने कहा, “कोई नहीं जानता कि चीन क्या कर सकता है। वह इसे एक तरह के जल बम के रूप में भी इस्तेमाल कर सकता है… अगर बांध बन गया और उन्होंने अचानक पानी छोड़ दिया, तो हमारा पूरा सियांग क्षेत्र नष्ट हो जाएगा।” उन्होंने कहा कि इस खतरे को देखते हुए अरुणाचल सरकार ने केंद्र के साथ परामर्श करके जल सुरक्षा के साथ-साथ एक रक्षा तंत्र के रूप में सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना की कल्पना की थी।

खांडू सियांग और ब्रह्मपुत्र नदियों को सुखाने की चीन की संभावित कोशिशों को लेकर भी आशंकित हैं, लेकिन असम के मुख्यमंत्री ने इसे हल्के में लिया। उन्होंने कहा कि ब्रह्मपुत्र के कुल प्रवाह में चीन का योगदान केवल 30-35% है, जो मुख्यतः हिमनदों के पिघलने और सीमित तिब्बती वर्षा के माध्यम से होता है।

सरमा ने 2 जून को एक्स पर पोस्ट किया था, “शेष 65-70% जल भारत के भीतर उत्पन्न होता है, जिसका श्रेय अरुणाचल, असम, नागालैंड और मेघालय में मूसलाधार मानसूनी वर्षा, सुबनसिरी, लोहित, कामेंग, मानस, धनसिरी, जिया-भराली, कोपिली जैसी प्रमुख सहायक नदियों और खासी, गारो और जयंतिया पहाड़ियों से कृष्णाई, दिगारू और कुलसी जैसी नदियों के माध्यम से आने वाले अतिरिक्त जल प्रवाह को जाता है।” उन्होंने कहा था, “ब्रह्मपुत्र कोई ऐसी नदी नहीं है, जिस पर भारत ऊपरी प्रवाह पर निर्भर है। यह एक वर्षा-आधारित भारतीय नदी प्रणाली है, जो भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद और मजबूत हो जाती है।”

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