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बिहार मतदाता सूची संशोधन पर आयोग को फटकार, कोर्ट बोला—’समय समस्या है, अभ्यास नहीं’

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 10 जुलाई को बिहार मतदाता सूची के चुनाव आयोग द्वारा किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ऐसा करना कानूनी रूप से वैध है।

अदालत ने जोर देकर कहा कि हालांकि यह प्रक्रिया अपने आप में समस्याजनक नहीं हो सकती, लेकिन समय के कारण योग्य मतदाताओं को अपील करने का समय दिए बिना ही मताधिकार से वंचित किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने इस महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से कहा, “आपकी प्रक्रिया समस्या नहीं है… समस्या समय की है।” उन्होंने कहा, “चुनाव से पहले ही किसी व्यक्ति को मताधिकार से वंचित कर दिया जाएगा और उसके पास बहिष्कार का बचाव करने का समय नहीं होगा। अदालत ने चुनाव आयोग से पूछा, ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ के लिए कानून कहां है?

न्यायमूर्ति धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची की पीठ ने ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ करने के चुनाव आयोग के कानूनी अधिकार पर सवाल उठाते हुए पूछा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की किस धारा के तहत इस तरह की कार्रवाई की अनुमति है। अदालत ने पूछा, “या तो ‘संक्षिप्त पुनरीक्षण’ होता है या ‘गहन पुनरीक्षण’। ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ कहाँ है?”

इसने पुनरीक्षण के समय को भी चुनौती दी। न्यायमूर्ति बागची ने कहा, “इस गहन प्रक्रिया को करने में कुछ भी गलत नहीं है, ताकि गैर-नागरिक मतदाता सूची में न रहें, लेकिन यह इस चुनाव से पहले ही हो जाना चाहिए।”

अदालत ने चुनाव आयोग से तीन प्रमुख प्रश्न पूछे

इस तरह का संशोधन करने का उसका अधिकार, इसकी प्रक्रिया की वैधता और यह प्रक्रिया राज्य चुनावों के इतने करीब क्यों आयोजित की जा रही है।

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने तर्क दिया कि यह संशोधन मनमाना था, खासकर यह देखते हुए कि 2003 में हुए पिछले संशोधन के बाद से 10 बड़े चुनाव हो चुके हैं। उन्होंने सवाल किया कि सरकारी सेवाओं के लिए व्यापक रूप से स्वीकृत आधार को प्रमाण के रूप में क्यों नहीं स्वीकार किया गया।

उन्होंने 11 स्वीकार्य दस्तावेजों की सीमित सूची और माता-पिता के सत्यापन की मांग पर भी चिंता जताई और इस प्रक्रिया को “अतार्किक” बताया। अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने अदालत को बताया कि यह संशोधन “गरीबों, प्रवासी मजदूरों और कमजोर वर्गों को बाहर करने के लिए बनाया गया है”।

अब तक विभिन्न राजनीतिक नेताओं और सामाजिक संगठनों द्वारा छह से अधिक जनहित याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं, जिनमें टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा, एनसीपी की सुप्रिया सुले और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) शामिल हैं, जिनमें संशोधन पर स्थगन आदेश की मांग की गई है। अदालत ने तीनों मुद्दों पर चुनाव आयोग से विस्तृत जवाब मांगा है।

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