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अमेरिका को घाटा, भारत की बल्ले-बल्ले! 

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के नए टैरिफ धमाके ने जैसे ही चीन से आने वाले माल पर भारी टैक्स लगा दिया, एप्पल के दिमाग की बत्ती जल गई। अब जब हर आईफोन पर अमेरिका में 300 डॉलर तक का एक्स्ट्रा खर्च आ रहा है, तो ऐपल ने झटपट भारत की उंगली पकड़ ली। ऐपल का यह जुगाड़ जहां कंपनी के लिए किफायती है, तो वहीं भारत के लिए भी फायदे का सौदा। एक तरफ विप्रो और दूसरी आईटी कंपनियां ट्रंप के टैरिफ से सांसें गिन रही हैं, वहीं ऐपल के इस फैसले ने भारत की मैन्युफैक्चरिंग ताकत को तगड़ा भरोसा दिया है। अब ज्यादा से ज्यादा आईफोन मेड इन इंडिया होंगे और सीधा अमेरिका की दुकानों में बिकने जाएंगे।

चीन से बना आईफोन अब होगा महंगा

ट्रंप सरकार ने चीन से आने वाले सामान पर 54 फीसदी टैक्स लगा दिया है। वहीं भारत से आने वाले प्रोडक्ट्स पर टैक्स 26 फीसदी ही है। यहीं से शुरू होती है ऐपल की गणित। जो 550 डॉलर का आईफोन बनता था, अब चीन से आने पर 850 डॉलर में पड़ेगा, यानी खर्चा सीधे 300 डॉलर तक बढ़ेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, ये बढ़ा हुआ खर्च कंपनी की कमाई पर सीधा असर डालेगा। इसी को देखते हुए ऐपल ने भारत को एक मजबूत विकल्प के तौर पर आगे लाने का फैसला किया है।

आईफोन अब भारत में बनकर जाएगा अमेरिका

बैंक ऑफ अमेरिका के एनालिस्ट वामसी मोहन के मुताबिक, ऐपल इस साल भारत में 25 मिलियन आईफोन्स बनाएगा, जिनमें से 10 मिलियन लोकल मार्केट में बिकेंगे और बाकी अमेरिका भेजे जाएंगे। यानी भारत से बने आईफोन्स अमेरिका की डिवाइस डिमांड का 50 फीसदी तक पूरा कर सकते हैं। 2017 से ऐपल भारत में पुराने मॉडल्स की असेंबली कर रहा है, लेकिन अब नए मॉडल्स भी यहीं बनने लगे हैं। इस तरह ऐपल को ‘मेड इन इंडिया’ टैग का फायदा मिल रहा है और साथ ही भारत के लोकल टैक्स से भी बचा जा रहा है।

अभी भी चीन में है ऐपल का बेस कैंप

चीन में फॉक्सकॉन जैसे मैन्युफैक्चरिंग पार्टनर्स बड़ी फैक्ट्रियां चलाते हैं और वहां की सप्लाई चेन, कुशल मजदूर और सरकारी सपोर्ट बेहद मजबूत है, लेकिन टैक्स के नए झटकों ने ऐपल को मजबूर कर दिया है कि वो अपने प्रोडक्शन को भारत जैसे विकल्पों में बांटे। भारत की पीएलआई स्कीम और यहां की तेजी से बढ़ती स्मार्टफोन मार्केट ने ऐपल को लुभाया है। हालांकि, पूरी शिफ्टिंग एकदम से नहीं होगी, लेकिन शुरुआत हो चुकी है।

कितना महंगा होगा आईफोन 16 प्रो

आईफोन 16 प्रो की कीमत 1,000 डॉलर से बढ़कर 1,300 डॉलर तक जा सकती है। अगर अमेरिका 104 फीसदी तक टोटल ड्यूटी लगा देता है, तो यही फोन 1,500–1,600 डॉलर में बिकेगा, लेकिन ऐपल इस झटके को सीधे ग्राहकों पर नहीं मारेगा। वो कुछ खर्च खुद उठाएगा, और जो बढ़ोतरी होगी, वो धीरे-धीरे होगी क्योंकि कंपनी के पास अभी कुछ महीनों का स्टॉक पहले से मौजूद है। ऐपल संभव है कि ग्लोबल बेस प्राइस बनाए रखे, यानी अमेरिका में बढ़ी कीमत का बोझ दूसरे देशों में थोड़ा-थोड़ा बांट दे। इससे अमेरिकी मार्केट में डिमांड पर असर कम होगा, और बाकी दुनिया में कीमतें थोड़ी बढ़ सकती हैं।

क्यों अमेरिका में नहीं बनते आईफोन्स?

ट्रंप का कहना है कि मैन्युफैक्चरिंग अमेरिका में वापस लानी चाहिए, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो ये बिल्कुल भी सस्ता सौदा नहीं है। वेडबुश रिसर्च फर्म ने तंज कसते हुए कहा, अगर लोगों को 3,500 का आईफोन चाहिए, तो हम उसे न्यू जर्सी या टेक्सास में बना सकते हैं। असल में आईफोन बनाना मेहनत और सटीकता वाला काम है, जिसमें हजारों मजदूरों की जरूरत होती है और ये सस्ते में एशिया में मिलते हैं, अमेरिका में नहीं। ऐपल अमेरिका में दूसरी टेक चीजों जैसे एआई सर्वर वगैरह का प्रोडक्शन तो बढ़ा रहा है, लेकिन आईफोन जैसी प्रोडक्ट को फिलहाल भारत और एशिया जैसे सस्ते और स्केलेबल देशों में बनाना ही फायदे का सौदा है। वियतनाम पर भी 46 फीसदी टैक्स लगने से ऐपल के लिए भारत और ज्यादा आकर्षक बन गया है। ट्रंप ने वियतनाम को डील की बात जरूर कही है, लेकिन असली भरोसा भारत पर जताया जा रहा है।

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