भारत के दुश्मनों का पसीना छुड़ाने आ रहा राफेल—एम
मंगलवार को सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने भारत के अब तक के सबसे बडे लड़ाकू विमान सौदे को मंजूरी दे दी है। इस सौदे के तहत भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल मरीन लड़ाकू विमानों की खरीदी को मंजूरी दी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, फ्रांस के साथ होने वाला यह सौदा 63 हजार करोड़ रुपए से अधिक का है। भारतीय नौसेना को 22 सिंगल-सीटर और चार ट्वीन-सीटर राफेल मरीन जेट मिलने वाले हैं।
इस सौदे पर हस्ताक्षर होने के लगभग पांच साल बाद राफेल-एम जेट की डिलीवरी शुरू होने की उम्मीद है। इन लड़ाकू विमानों को भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर तैनात किया जाएगा और यह नौसेना के मौजूदा मिग-29 के बेड़े का पूरक होगा।
राफेल मरीन क्यों है खास?
राफेल-एम की डिजाइन राफेल से थोड़ी अलग है। राफेल मरीन की साइज राफेल से छोटी है।
इस विमान को विमानवाहक युद्धपोत के लिए खास तैयार किया गया है।
राफेल मरीन आसानी से एयरक्राफ्ट कैरियर पर लैंड कर सके, इसके लिए विमान के लैडिंग गियर और एयर फ्रेम को भी अधिक शक्तिशाली बनाया गया है।
इस विमान की फोल्डिंग विंग्स भी काफी मजबूत है।
कितना है राफेल-एम का वजन?
राफेल की तुलना में राफेल मरीन का वजन थोड़ा अधिक है। जानकारी के मुताबिक, इस लड़ाकू विमान का वजन लगभग 10,300 किलोग्राम है। राफेल विमान के विंग्स मुड़ नहीं सकते हैं, लेकिन राफेल मरीन के विंग्स पूरी तरह से मुड़ सकते हैं।
विमान में लगाए जा सकते हैं शक्तिशाली मिसाइल
इस विमान में पनडुब्बियों को खोजने और मार गिराने में एडवांस रडार लगाए गए हैं।
इस विमान में एंटी शिप मिसाइल भी लगाए जाएंगे, जो हवा से जमीन हमला कर सकती है।
इस विमान में मीटियोर, स्कैल्प और हैमर मिसाइलें जैसे मिसाइलें लगाई जा सकती है।
राफेल मरीन की कितनी है गति?
राफेल मरीन जेट की गति की बात करें तो यह विमान मैक 2 की स्पीड़ से उड़ान भर सकता है। यह स्टील्थ से लैस है, मतलब कि यह दुश्मनों के रडार को चकमा देने में सक्षम है। राफेल विमान हिमालय के ऊपर बेहद सर्द मौसम में भी उड़ सकता है।
राफेल मरीन का कॉन्बैट रेडियस है 3700 किलोमीटर
राफेल मरीन विमान एक मिनट में 18 हजार मीटर की ऊंचाई पर जा सकता है। पाकिस्तान के पास मौजूद F-16 और चीन के पास मौजूद J-20 विमानों से राफेल ज्यादा बेहतर है। इस विमान का कॉम्बैट रेडियस 3700 किलोमीटर है। ये विमान अपनी अपनी उड़ान वाली जगह से 3700 किलोमीटर दूर तक हमला कर सकता है।
क्यों पड़ी राफेल-एम की जरूरत?
भारतीय नौसेना में शामिल आईएनएस विक्रांत के एविएशन फैसिलिटी कॉम्प्लेक्स यानी एफएफसी को मिग-29 फाइटर प्लेन के लिहाज से तैयार किया गया था।
मिग-29 रूस में बने फाइटर जेट हैं। हाल के दिनों में क्रैश की वजह से मिग चर्चा में है।
क्रैश के कारणों की वजह से भारतीय नौसेना अपने बेड़े से मिग को पूरी तरह से हटाने जा रही है।
आने वाले सालों में नौसेना की योजना तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के नौसेना वर्जन को विक्रांत पर तैनात करने की है।
तेजस देश में बन रहा ट्विन-इंजन डेक-बेस्ड फाइटर प्लेन है।